Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 7
________________ आभारोक्ति प्रस्तुत पुस्तक को पूर्णता प्रदान करने हेतु मैं अपने परम आदरणीय गुरुवर स्व. प्रो. लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी, पूर्व रेक्टर, का.हि.वि.वि., वाराणसी तथा शोध निर्देशक प्रो. हरिहर सिंह एवं प्रो. पारसनाथ सिंह, विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, का. हि. वि. वि., डॉ. अतुल त्रिपाठी, रीडर, कला इतिहास विभाग, का. हि. वि. वि. एवं श्री श्यामबाबू पटेल, डिप्टी रजिस्ट्रार, का.हि.वि.वि., वाराणसी का विशेष ऋणी एवं आभारी हूँ । स्व. पूज्य माताजी, स्व. पिताजी और बड़े भाई श्री सीताराम सिंह, श्री जय सिंह, स्व. राम सिंह, बड़ी भाभी श्रीमती सुदामा देवी, श्रीमती मिन्टो सिंह, श्रीमती सरोज सिंह, बहन श्रीमती सुशीला देवी, मित्र डॉ. हेमन्त कुमार सिंह, प्रवक्ता, काशी विद्यापीठ (दक्षिण परिसर) के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ, जिनका इस कृति की पूर्णता में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमें सहयोग मिलता रहा है। मैं अपनी पत्नी श्रीमती साधना रानी, स. अ., कन्या पूर्व मा. वि. इमिलिया, राजगढ़, मिर्जापुर जिनके सहयोग एवं प्रेरणा के बिना यह कार्य कथमपि सम्भव नहीं था, के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। उनके बड़े भाई श्री प्रमोद कुमार सिंह और मेरी सालियां श्रीमती सुधा रानी, श्रीमती संध्या सिंह, श्रीमती श्वेता सिंह, श्रीमती सुन्दरी देवी, और उनके पति क्रमशः श्री संतोष कुमार सिंह, श्री अश्विनी कुमार सिंह, श्री विमल कुमार सिंह, श्री रामवृक्ष सिंह, श्री दिलीप कुमार सिंह, मामा श्री कृपाशंकर सिंह, श्री मायाशंकर सिंह, स्व. रामधनी सिंह साथ ही साथ समस्त निकट संबंधियों एवं सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सहनिदेशक डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय जी का विशेष आभारी हूँ जिन्होंने अपनी सम्पादन क्षमता एवं मार्ग निर्देशन से प्रस्तुत कृति को पूर्णता प्रदान की । वर्तमान ग्रंथ की पूर्णता में अनेक विद्वानों की कृतियों का मैंने सदुपयोग किया है, मैं सबके प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ। मैंने इस ग्रंथ को अपनी क्षमता से तैयार किया है, इसमें किसी प्रकार की त्रुटियाँ रह गयी हों तो सुधी विद्वानों से क्षमा प्रार्थी हूँ। पाठकों से सादर सुझाव आमंत्रित है ताकि अगले संस्करण में मैं उनका परिमार्जन कर सकूं। भवदीय डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह

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