Book Title: Bruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Mahendrapratap Sinh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 6
________________ प्रकाशकीय जिनशासन की चिरजीवता का मौलिक आधार है- आगम। जैन आगम ग्रन्थों में छेदसूत्रों का अप्रतिम महत्त्व है। इन ग्रन्थों में साधु जीवन में करणीय कार्यों की विधि और अकरणीय कार्यों के लिए निषेध का प्रावधान है। प्रमाद के लिए प्रायश्चित्त का भी विधान है। इन्हीं करणीय और अकरणीय कार्यों की सविस्तार विवेचना करनेवाला ग्रन्थ है- बृहत्कल्पसूत्र । बृहत्कल्पसूत्र चार छेद सूत्रों में अपना विशेष स्थान रखता है। कल्पसूत्र पर दो भाष्य लिखे गये हैंबृहत् और लघु । उत्तरकाल में 'बृहत्' शब्द कल्प का विशेषण बन गया और इस आधार पर सूत्र का नाम बृहत्कल्पसूत्र हो गया। प्रस्तुत ग्रन्थ 'बृहत्कल्पभाष्य' बृहत्कल्प पर संघदासगणि द्वारा रचित बृहत्काय भाष्य है जिसमें २५० सूत्रों पर कुल ६४९० गाथाएँ हैं। इस विशालकाय ग्रन्थ का सांस्कृतिक अध्ययन करना निश्चय ही एक श्रमसाध्य कार्य है जिसे डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह ने पूर्ण किया है। इस ग्रन्थ पर अभी तक कोई भी स्वतन्त्र कार्य नहीं हुआ है। इस ग्रन्थ को आधार बनाकर जहाँ डॉ. मोतीचन्द्र ने 'सार्थवाह' नामक अपनी पुस्तक का 'जैन साहित्य में यात्री और सार्थवाह' नामक अध्ययन पूरा किया वही डॉ. मधु सेन ने अपनी कृति 'ए कल्चरल हिस्ट्री ऑफ निशीथचूर्णि में भी इस ग्रन्थ का भरपूर प्रयोग किया है जो पार्श्वनाथ विद्यापीठ से ही प्रकाशित है। प्रस्तुत कृति डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह के पी-एच. डी. शोध-प्रबन्ध का प्रकाशित संस्करण है। उन्होंने यह ग्रंथ पार्श्वनाथ विद्यापीठ को प्रकाशन हेतु दिया एतदर्थ हम उनके आभारी हैं। इस ग्रंथ के प्रूफ संशोधन का कार्य डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, सहनिदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने किया है, हम उनके प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं । ग्रंथ की प्रकाशन सम्बन्धी व्यवस्था संस्थान के प्रकाशन अधिकारी डॉ. विजय कुमार ने किया है, एतदर्थ हम उन्हें साभार धन्यवाद देते हैं। ग्रन्थ का सुंदर टंकण एवं मुद्रण क्रमशः श्री विमल चन्द्र मिश्र एवं महावीर प्रेस ने किया है, इसके लिए वे निश्चय ही बधाई के पात्र हैं। आशा है यह पुस्तक शोधार्थियों एवं श्रमणाचार में रुचि रखने वाले सुधी पाठकों के लिए उपादेय सिद्ध होगी। भवदीय इन्द्रभूति बर मंत्री

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