Book Title: Bolte Chitra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 54
________________ कुणाल की आंखें मेरे रूप और यौवन को निहार कर तो देखो ।” तिष्यरक्षिता उस युग की असाधारण सुन्दरी थी । उसे अपने रूप पर गर्व था । पर कुणाल ने स्पष्ट कहा -- " माता ! पुत्र का धर्म माता की माता के रूप में उपासना करना है, अन्य रूप में नहीं ।" चोट खाई हुई नागिन की तरह तिष्यरक्षिता फुफ्कार उठी- "कुरणाल! तू मेरा अपमान कर रहा है । नारी अपने प्रेम के खातिर पुरुष के चरणों में सब कुछ अर्पण कर सकती है और प्रेम को ठुकरा देने पर वह उसका भयानक बदला लेना भी जानती है। मालूम होता है कि तुझे अपने इन कमल-नेत्रों पर गर्व है जिसके कारण मेरे रूप को ध्यान से नहीं देख रहा है । किन्तु समय आने पर तेरी ये आँखें नहीं रहेंगी ।" ३५ इस घटना के कुछ समय बाद तिष्यरक्षिता को बदला लेने का अवसर मिल गया । तक्षशिला की प्रजा ने भयंकर विद्रोह कर दिया था। उस विद्रोह को नष्ट करने के लिए स्वयं सम्राट् जाना चाहते थे । पर तिष्यरक्षिता के कहने से उन्होंने कुणाल को भेज दिया । तिष्यरक्षिता समझती थी कि कुणाल वहाँ के विद्रोह को दबा नहीं सकेगा और बुरी मौत मारा जायेगा । किन्तु तिष्यरक्षिता की इच्छा पूर्ण नहीं हुई । कुणाल ने विद्रोह को शान्त कर दिया । सम्राट् की आज्ञा से वह तक्षशिला का राज्यपाल बन गया । कुणाल अपनी धर्म-पत्नी कंचना के साथ वहीं आनन्द से रहने लगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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