Book Title: Bolte Chitra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 146
________________ परिवर्तन १२७ वे कुर्सी से नीचे उतरे और कुत्त की पीठ पर प्रेम से हाथ फेरने लगे। बोले-मित्र ! मैंने पत्थर मारकर तुम्हारा भारी अपराध किया है। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में कभी किसी को चोट नहीं पहुँचाऊँगा। मेरा मानस पश्चात्ताप की आग से जल रहा है। उनका हृदय अत्यन्त मृदु होगया। चेहरे पर मधुर प्रसन्नता नाचने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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