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परिवर्तन
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वे कुर्सी से नीचे उतरे और कुत्त की पीठ पर प्रेम से हाथ फेरने लगे। बोले-मित्र ! मैंने पत्थर मारकर तुम्हारा भारी अपराध किया है। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में कभी किसी को चोट नहीं पहुँचाऊँगा। मेरा मानस पश्चात्ताप की आग से जल रहा है।
उनका हृदय अत्यन्त मृदु होगया। चेहरे पर मधुर प्रसन्नता नाचने लगी।
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