Book Title: Bolte Chitra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 90
________________ आनन्दघन अध्यात्मयोगी आनन्दघन तीन दिन के उपवास के पश्चात् भिक्षा के लिए निकले। पर उन्हें देखकर गृहस्थी लोग अपना दरवाजा बन्द कर लेते। तीन चार घरों पर वे गये, किन्तु उन्हें सत्कार के स्थान पर दुत्कार मिला। भिक्षा के स्थान पर शिक्षा मिली। किसी ने कहा-यह कैसा साधु है, यह तो अर्धमत्त है। किसी ने कहा-यह तो भमता भूत है। ___ आनन्दघन तो अपनी मस्ती में झूम रहे थे। उन्हें तनिक मात्र भी ग्लानि नहीं थी। प्रसंशा और निन्दा दोनों को वे विष समझते थे-एक मीठा विष, दूसरा कटुक विष । वे निजानन्द की मस्ती में अलमस्त होकर गाने लगे आशा ओरन की क्या कीजे ज्ञान सुधारस पीजे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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