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बोलते चित्र विदाई-समारोह का आयोजन किया गया । तुर्किस्तान के बादशाह ने सिकन्दर को भोजन के लिए निमन्त्रण दिया । सिकन्दर ने स्नेह से उसके निमंत्रण को स्वीकार किया।
दूसरे दिन नगर के मध्य में एक विशाल व कलात्मक पण्डाल बनाया गया और सभी अधिकारियों के लिए अनुक्रम से आसन बिछाये गये । भोजन के समय पर सिकन्दर ने अनुचरों के साथ प्रवेश किया।
सोने के थाल सजाये हुए थे । रंग विरंगे रूमाल उन पर ओढ़ा रखे थे । ज्यों ही रूमाल हटाये गये । सिकन्दर ने देखा-उसका थाल हीरों, पन्नों माणक और मोतियों से जगमगा रहा है । अन्य सेनापतियों की थालियाँ सोने और चाँदी से भरी हुई हैं।
सम्राट सिकन्दर का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। यह भोजन है या भोजन के नाम पर मजाक है ? ।
तुर्किस्तान के बादशाह ने शान्ति से कहा-आप क्रोध न करें, आप जिस भोजन की इच्छा करते थे वही भोजन मैंने आपको रखा है । अन्न के भोजन की तो ग्रीस में भी कमी नहीं थी, पर इस भोजन के लिए ही आपको यहाँ तक आने का कष्ट करना पड़ा है । आपने इस भोजन को पाने के लिए ही इतने कष्ट सहन किये हैं।
सिकन्दर के पास इसका कोई उत्तर नहीं था । वह बिना युद्ध किये ही उलटे पैरों ग्रीस लौट गया।
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