Book Title: Bolte Chitra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 135
________________ ११६ बोलते चित्र था । राम ने सम्पूर्ण सम्पत्ति के दो विभाग किये। एक विभाग में अपने तीन पुत्र थे और दूसरे विभाग में रघु का एक पुत्र था । रघुमरिण इस विभाग को देखकर प्रसन्न होने के बजाय नाराज हो गया । उसने कहा- भाई ! तुमने यह क्या किया ! हम दोनों भाई तो अलग हो नहीं रहे हैं । हम अलग होते तो दो विभाग करना उचित था, पर हम तो पुत्रों को सम्पत्ति बाँट रहे हैं, अतः चार समान विभाग किये जाएँ और चारों में बाँट दिए जाएँ । रघु ने चार विभाग किये और चारों को बाँट दिये । कहाँ एक-एक पैसे के लिए आपस में लड़ने वाले भाई और कहाँ अपने हिस्से की सम्पत्ति को भी अपने भाई के लड़कों को देने वाले भाई ! * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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