Book Title: Bolte Chitra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 109
________________ बोलते चित्र यह खेत तुम्हारा है ? किसान ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाते हुए कहामुझे मालूम था कि तुम जो भी माल ले जाओगे वह बिना पैसे दिये ले जाओगे। फिर मैं अपने पड़ोसी को हानि में क्यों डालू? मैं साथ में रहूँ और तुम मेरे पड़ोसी को लूटो, इससे तो यही श्रेयस्कर है कि मैं स्वयं लूटा जाऊं। मेरा सर्वस्व लुट गया है तथापि मुझे प्रसन्नता है कि मैं अपने पड़ौसी के प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहा हूं। अधिकारी गहराई से सोचने लगा-जिस देश के किसानों में भी इस प्रकार की उदात्तवृत्ति हो उस देश को जीतना कठिन ही नहीं कठिनतर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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