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चाँवल को गर्म करता हूँ
कर रहा हूँ । तुम्हारे सिर में इतनी गर्मी है कि सारा मुंह तुम्हारा लाल सुर्ख हो रहा है, तो क्या मेरा भात गर्म नहीं होगा !
पति के प्रेम से पगे हुए शब्दों को सुनकर पत्नी पानीपानी हो गई । कपूर की तरह उसका क्रोध उड़ गया । उसने उसी समय मन ही मन प्रतिज्ञा ग्रहण की कि मैं भविष्य में कभी क्रोध नहीं करूंगी ।
क्रोध को क्षमा से जीतो । क्रोध यदि ज्वाला है तो क्षमा वह जलधारा है जो उसे शान्त कर देती है । रक्त से सने हुए वस्त्र रक्त से नहीं, पानी से ही साफ होंगे ।
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