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प्राणोत्सर्ग
१०३ महानाम ने पूछा-राजन् ! क्या आप मुझे पहचानते हैं ?
राजा-महानाम ! आपको कौन नहीं पहचानता ? ज्ञान की दृष्टि से, चारित्र की दृष्टि से, संस्कार और सभ्यता की दृष्टि से आप सभी नगरजनों में महान् हैं। एतदर्थ ही पौरजन आपको महानाम से सम्बोधित करते हैं । कपिलवस्तु के निवासियों की तरह मैं भी आपका हृदय से स्वागत करता हूं।
महानाम-राजन ! मैं यह जानना चाहता हूं कि आपका और मेरा कुछ सम्बन्ध है ?
राजा ने अतीत की गहराई में प्रवेश किया। उसे स्मरण आया-श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित ने कपिलवस्तु से एक कन्या की याचना की थी। अभिमानी नागरिक इन्कार हो गए थे। वातावरण युद्ध में परिवर्तित होने वाला था । उस समय इस महानाम ने अपनी दासी पुत्री देकर प्रसेनजित के क्रोध को शान्त किया था। उसी दासी पुत्री का पुत्र मैं हूँ । जब मैं अवस्था में छोटा था तब ननिहाल आया था। तब महानाम ने मुझे एक वर्ष तक का अध्ययन कराया था । सम्बन्ध की दृष्टि से ये मेरे नाना हैं । और अध्ययन कराने की दृष्टि से मेरे विद्या गुरु हैं । इस प्रकार इनके साथ मेरे दो सम्बन्ध हैं। विडम ने कहा-आपके साथ मेरे दो सम्बन्ध हैं-नाना और विद्या गुरु का।
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