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प्राणोत्सर्ग
कपिलवस्तु पर श्रावस्ती के राजा विड्डभ ने आक्रमरण किया। उसके भय से कपिलवस्तु का अग्रणी भाग गया। विजयी राजा विड्डभ ने किले को तोड़कर नगर में प्रवेश किया। उसने सैनिकों को आदेश देते हुए कहाआज का सुनहरा दिन विश्वासघात और अपमान का बदला लेने का है। तुम जितनी भी सम्पत्ति लूट सको, लूटो । कोई व्यक्ति तुम्हारे कार्य में विघ्न उपस्थित करता है तो उसे मार दो, यही विजयोत्सव है।
कपिलवस्तु के महानाम ने सुना। वह चिन्तन करने लगा, सत्ता और सम्पत्ति के लिए मानव किस प्रकार दानवीय कृत्य करने को प्रस्तुत हो जाता है ! मैं नगर निवासियों का करुण-क्रन्दन सुन नहीं सकता। उसे कुछ स्मरण आया और वह सीधा ही राजा के पास पहुँचा।
राजा ने महानाम का स्वागत किया और उसे बैठने के लिए योग्य आसन भी दिया।
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