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की गरीब जनता किस प्रकार चलती है ।
वह गरीब व्यक्ति जूते पाकर प्रसन्न हुआ और आगे चल दिया ।
बोलते चित्र
कालिदास ने तपी हुई जमीन पर ज्यों ही पैर रखा, पैर मुँह बोलने लगे । फिर भी मन में प्रसन्नता थी ।
राज कवि कुछ दूर चला ही था कि राजा का हाथी सामने आकर खड़ा हुआ । महावत ने कहा —— कविवर ! इस समय नंगे पैर आप चल रहे हैं ? हाथी पर बैठिए, मैं आपको घर तक पहुँचा देता हूँ ।
कवि - तुम अपने कार्य के लिए जाओ, मैं चला जाऊँगा ।
महावत ने कहा- ऐसा नहीं हो सकता । आपको बैठना ही होगा । अन्त में महावत के अत्याग्रह से कवि को हाथी पर बैठना पड़ा ।
हाथी राजमहलों के सन्निकट पहुँचा गवाक्ष में बैठे हुए महाराजा भोज ने देखा, कवि कालिदास हाथी पर बैठकर आ रहे हैं । उन्होंने पूछा - कविवर, हाथी कहां से मिल गया ?
कवि ने मुस्कराते हुए कहा - मैंने पुराने फटे हुए जूते का दान दिया । उसके पुण्य फलस्वरूप हाथी की यह सवारी मिली है । जिसने धन का दान नहीं किया उसका धन निरर्थक है ।
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