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बोलते चित्र
के लिए रात को नदी में चन्दन की जो लकड़ियाँ आती हैं । उन्हें इकट्ठी करके बेचता हूँ ।
राजा ने आदेश दिया - बैल - शाला में से बढ़िया से बैल, जो इस वृद्ध को पसन्द हो, दे दिया जाय । और प्रातः काल पुनः मेरे सामने इसे उपस्थित किया जाय ।
प्रातःकाल होने पर वृद्ध को राजा श्रेणिक के सामने उपस्थित किया गया । राजा ने वृद्ध से पूछा- तुन्हें बैल मिल गया ?
उसने कहा- राजन् ! मेरे जैसा बैल आपकी बैलशाला में नहीं है ।
राजा को आश्चर्य हुआ— मेरी बैल शाला में इसके बैल जैसा बैल नहीं है ।
श्रेणिक ने कहा - अच्छा, तो तुम अपना बैल दिखाओ !
वृद्ध - राजन् ! मेरा बैल यहाँ आ सकता नहीं । यदि आपको देखना है तो मेरी झौंपड़ी पर पधारिए ।
राजा बैल को देखने की भावना से उसके साथ चल दिया । सात मंजिल का एक भव्य भवन आया । उस वृद्ध ने कहा – मेरी यही झोंपड़ी है । राजा उसके पीछे-पीछे चलता हुआ सातवें मंजिल पर पहुँचा, उसने वस्त्र से आच्छादित रत्न जड़ित एक स्वर्ण बैल दिखलाया । उसमें बहुमूल्य रत्न जगमगा रहे थे । राजा तो ठगा सा रह
गया ।
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