Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 8
________________ पाठकों को पहिले बतलाया जा चुका है कि इस प्रन्थ के कर्ता जयाचार्य अर्थात् श्री जीतमलजी महाराज हैं। परन्तु केवल इतने ही विमरण से पाठकों की अभिलाषा पूर्ण नहीं होगी। अतः श्रीजयाचार्य महाराज जिस जैन श्वेताम्बर तेरा. पन्थ समाज के चतुर्थ पट्ट स्थित पूज्य रह चुके हैं उस समाज की उत्पत्ति और उस समाज के स्थापक श्री "भिक्षु' गणिराज की संक्षेप जीवनी प्रकाशित की “जाती है। - नित्य स्मरणीय पूज्य "भिक्षु" स्वामी की जन्म भूमि मरुधर (मारवाड़) देश में "कण्टालिया" नामक प्राम है। आपका अवतार पवित्र ओसवाल वंश की "सुखलेचा" जाति में पिता साह “घलुजी' के घर माता "दीपदि” की कुक्षि में विक्रम सम्बत् १७८३ आषाढ शुक्ला सर्वसिद्धा त्रयोदशी के दिन हुआ। आपके कुलगुरु “गच्छ वासी' नामक सम्प्रदाय के थे अतः उनके ही समीप आपने धर्म कथा श्रवणार्थ आना जाना प्रारम्भ किया। परन्तु वहां केवल बाह्याडम्बर ही देख कर आपने "पोतिया बन्ध” नामक किसी सम्प्रदाय का अनुसरण किया। वहां भी उसी प्रकार धर्म भावका अभाव और दम्भ का हो स्तम्भ खड़ा देख कर आपकी इष्ट सिद्धि नहींहुई । अथ इसी धर्म प्राप्तिकीगवेषणामें वाईससम्प्रदायके किसी विभाग के पूज्य 'रघुनाथ' जी नामक साधु के समीप आपका गमनाऽऽगमन स्थिर हुमा । आप की धर्म विषय में प्रवल उत्कण्ठा होने लगी और इसी अन्तर में आपने कुशील को त्याग कर शील प्रत का भी अनुशीलन कर लिया। और "मैं अवश्य ही संयम धारण करूंगा" ऐसे आपके भायी संस्कार जगमगाने लगे। यह ही नहीं किन्तु आपने संयमी होने का दृढ अभिप्रह ही धार लिया। भावी वलवती है-इसी अवसर में आपको प्रिय प्रिया का आपसे सदा के लिये ही वियोग हो गया। यद्यपि आपके सम्बन्धियों ने द्वितीय विवाह करने के लिये अति आग्रह किया तथापि भिक्ष के सदय हृदय ने अ. सार संसार त्यागने का और संयम ग्रहण करने का दृढ संकल्प ही करलिया। भिक्षु दीक्षा के लिये पूर्ण उद्यत हो गये परन्तु माताजी की अनुमति नहीं मिली । जवरघुनाथजीन भिक्षु की माता से दीक्षा देने के विषय में परामर्स किया तो माताजीने रघुनाथजी से उस * सिंह स्वप्न का विवरण कह सुनाया जो कि भिक्षु की गर्भावस्थिति में देखा था । और कहा कि इस स्वप्न के अनुसार मेरा पुत्र किसी राज्य विशेष - का अधिकारी होना चाहिए मिक्षार्थी वनने के लिये मैं कैसे आज्ञा दू। रघुनाथजी सिंहका स्थान मण्डलीक राजा की माता अथवा भावितात्म भनगार की माता देखती है।

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