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दृष्टांत : ३१-३२
तब वे बोले --"आपको इस बात की कैसे खबर पड़ी ?"
स्वामीजी बोले-"हममें अवधि आदि अतीन्द्रिय ज्ञान तो नहीं है, फिर भी तुम्हारे चेहरे की भाव भंगिमा देखकर हमने कहा।"
तब वे सच बोले- "हम आए तो लड़ने की दृष्टि से ही थे, दान-दया की चर्चा करनी थी।"
तब स्वामीजी बोले--"दान-दया के उत्तर तो बहुत लिखे पड़े हैं। चर्चा तो कल वाली ही कड़ी थी।" बाद में उनमें से कुछ लोग चर्चा कर स्वामीजी की शरण में आ गए।
३१. सवस्त्र या निर्वस्त्र एक दिन बहुत सारे सरावगी लोगों ने स्वामीजी से कहा-“यदि आप वस्त्र न रखें, तो आपकी करनी (तपस्या) बहुत कठोर होगी।"
___तब स्वामीजी ने कहा- "हमने श्वेताम्बर शास्त्रों के माधार पर घर छोड़ा है। उनमें तीन चादर, चोलपट्टा आदि रखने का विधान है, इसलिए हम वस्त्र रखते हैं । यदि दिगम्बर शास्त्रों के प्रति विश्वास हो जाए, तो हम वस्त्रों को छोड़ नग्न हो जाएंगे, फिर वस्त्र नहीं रखेंगे।"
३२. रोटो के लिए कैसे छोड़ ? एक बहिन बहुत बार स्वामीजी से आहार लेने के लिए प्रार्थना किया करती थीकभी मेरे घर भी आप गोचरी के लिए पधारें। एक दिन स्वामीजी उसके घर पर पधारे । वह स्वामीजी को बहुत राजी हुई और आहार देने लगी।
तब स्वामीजी ने पूछा-"लगता है, तुम्हें हाथ तो धोने पड़ेंगे।" तब वह बोली-"हाथ तो धोने पड़ेंगे।" तब स्वामीजी ने पूछा-"हाथ सजीव पानी से धोयोगी या गरम पानी से ?" तब वह बोली-"गरम पानी से धोऊंगी।" तब स्वामीजी बोले- "कहां धोओगी ?" तब उसने नाली की ओर संकेत करते हुए कहा-“यहां धोऊंगी।" तब स्वामीजी ने कहा-“यह पानी कहां गिरेगा ?" तब उसने कहा -“यह नीचे गिरेगा।"
स्वामीजी ने कहा-"नीचे पानी गिरने से वायुकाय आदि जीवों की हिंसा होगी, . इसलिए मैं तुम्हारा आहार नहीं ले सकता।"
तब वह बोली-"आप तो आहार देखकर ले लें। हम गृहस्थ हैं और अपना कार्य करते हैं, उसमें आपको क्या आपत्ति होती है ? हमारी सांसारिक क्रिया हम कैसे छोड़ेंगे ?
___ तब स्वामीजी ने कहा- 'हे बहिन ! तुम्हारी इस कर्म बंधन करने वाली सावध क्रिया को भी तुम नहीं छोड़ती हो तो रोटी के लिए मैं अपनी निरवद्य क्रिया को कैसे छोडूं ?" यह कह कर स्वामीजी वहां से चले गए।