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दृष्टांत : १८२-१८५ किए हुए पाप उदय में पाए हैं।"
__ भारमलजी स्वामी बड़े विनीत थे। उन्होंने स्वामीजी का वचन शिरोधार्य कर लिया। ऐसे विनीत और उत्तम पुरुष होते हैं, वे किसी को खामी बताने का अवसर ही कैसे देंगे?
१८२. नींद में गिर जाऊं तो स्वामीजी ने बाल-मुनि भारमलजी को यह आज्ञा दी-"तुम खड़े-खड़े (कण्ठस्थ) समग्र उत्तराध्ययन सूत्र का पुनरावर्तन किया करो।"
तब भारमलजी स्वामी बोले-स्वामीनाथ ! कदाचित् नींद में नीचे गिर जाऊं, तो!
तब स्वामीजी ने वापस कहा-"कोने का प्रमार्जन कर, उसके सहारे खड़े
रहो।"
इस प्रकार भारमलजी स्वामी ने अनेक बार समग्र उत्तराध्ययन सूत्र का स्वाध्याय किया । ऐसे थे वे वैरागी पुरुष !
१८३. आदत बदलने का उपाय साधुओं और साध्वियों की कठोर प्रकृति को देखते तो उनकी स्खलना और खामी को मिटाने के लिए स्वामीजी इस प्रकार दृष्टान्त देते थे-"कषाय करना मानो अग्नि को प्रज्वलित करना है; कषायी मनुष्य सांप की भांति फुफकारता है ।" यह कहकर प्रकृति को सुधारने का प्रयत्न करते ।
१८४. अन्त में 'मोरियो मारू' गाते हैं अन्य सम्प्रदाय के साधु व्याख्यान देते हैं, सूत्र-सिद्धान्त का वाचन करते हैं और अन्त में जीवों की हिंसा करने में पुण्य और मिश्र धर्म की प्ररूपणा करते हैं और सावद्य अनुकम्पा में धर्म बतलाते हैं, इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"बहिने रात्री जागरण में लौकिक दष्टि से अच्छे-अच्छे गीत गाती हैं और अन्त में "मोरियो मारू'' का गीत गाती हैं। इसी प्रकार अन्य सम्प्रदाय के साधु व्याख्यान के प्रारम्भ में तो अनेक बातें कहते हैं, किन्तु अन्त में सावद्य दान और दया में पुण्य भोर मिश्र की प्ररूपणा करते हैं।
१८५. ऐसे हैं ये दृढधर्मी आसकरण दांती ने विजयचंदजी पटवा से कहा-"विजयचंदजी ! तुम्हारे गुरु भीखणजी किंवाड़ खोल मेड़ी में ठहरे।"
यह सुनकर विजयचंदजी बोले-"मेरे गुरु इस प्रकार नहीं ठहरते ।" . तब आसकरणजी ने कहा- "भाई विजयचन्द ! मेरा विश्वास तो कर।"
तब विजयचंदजी बोले-तुम्हारा पूरा विश्वास है तुम सदा झूठ बोलते हो।" ऐसा कहकर उसे पराभूत कर दिया। साधुओं के पास जाकर उन्हें पूछा तक नहीं।
यह बात स्वामीजी के कानों तक पहुंची, तब स्वामीजी बोले-"ऐसा लगता है, १. लड़की की विदाई में गाए जाने वाला गीत ।