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दृष्टांत : २४-२६
२५५ रतनजी तौ धर्म मै समझ नहीं, भांग पीये। अनै हेमजी स्वामी लोकां ने उपदेश देई समझावै। हेमजी स्वामी री जाति तो आछा बागरेचा रतनजी री जाति भलकट । पिण रतनजी तौ धर्म मै समझ नहीं। हेमजी स्वामी धर्म मै समझे । ओरां ने पिण समझावै। जद सेवग बोल्यौ
जोड़ी तो जुगती मिली, हेमा नै रतनेश । भलकट सखोळ भांगड़ी आछौ देवै उपदेश ।
२४. छेहड़े संथारौ करशां
घर मै थकां हेमजी स्वामी नै एक पोखरणी ब्राह्मण ऊधौ अवळी बोले -"थे भीखणजी रा श्रावक हो सो अन्न बिना मरसौ।"
जद हेमजी स्वामी बोल्या-म्हे भीखणजी रा श्रावक छां सो छेहड़े संथारा करशां। सो अन्न बिना ई ज मरशां। जद ते कष्ट होय जातो रह्यो।
२५. पहिला पुन्य पछै निर्जरा खेतसीजी स्वामी नै किण हि पूछयौ-शुभ जोग वर्ते जद पहिला पुन बंधै के निर्जरा हुवै ?
___ जद खेतसीजी स्वामी दृष्टत दीयो। उणनै पूछयौ–पहिला पांनड़ा के धांनड़ा!
जद उ बोल्यौ–पहिला पांनड़ा, पछै धांनडा । ज्यं शुभ जोग प्रवर्ते जद पहिले समे इज पुन्य बंधे, तिण समय अशुभ कर्म चळे तो खरा, पिण झरै आगळे समय ।
भगवती श० १ सूत्र ३१ मै कर्म चळवा रौ समय अनै निर्जरवा नौ समय जूओ-जूओ कह्यौ, तिण कारण पहिला पुन्य बंध नै पछै निर्जरा कही।
२६. शुभ जोग आश्रव के निर्जरा ? किण हि पूछ्यौ-शुभ जोगां नै आश्रव कहीजे के निर्जरा कहीजे ?
जद खेतसीजी स्वामी बोल्या-शुभ जोगां नै आश्रव पिण कहीजे नै निर्जरा पिण कहीजे । जद उण कह्यौ-वस्तु तो एक शुभ जोग तिणने आश्रव नै निर्जरा औ दो किम कहीजै ? ___ जद खेतसीजी स्वामी दृष्टत देई बोल्या-किण हि मानवी ने बापई कहीजै नै बेटोई कहिजे ते किण न्याय ?
उणरा बाप नी अपेक्षाय तौ बेटौ कहीजै अनै उणरा बेटा नी अपेक्षाय उणनै बाप कहीजै। ज्यूं शुभ जोगां सूं पुन्य पिण बंधे नै अशुभ कर्म पिण झरे । पुन्य बंधे इण लेखे तो शुभ जोगां नै आश्रव कहीजै, अन अशुभ कर्म