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दृष्टांत
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तब जयमलजी बोले -- शाहपुरा के राजा पर राणाजी की फौज ने चढ़ाई की । लड़ाई करने लगे । पर राणाजी की फौज का दाव नहीं लगा । उसका कारण एक तो शाहपुरा का कोट मजबूत, उसके चारों ओर पानी से भरी खाई, अंदर तोपों की बहुलता और राणाजी की फौज में लड़ने वाले अधिकारी भी शाहपुरा वालों से तोड़ने के मत में नहीं । छह महीने तक चेष्टा की लाखों रुपयों का पानी हुआ । पर शाहपुरा हाथ नहीं लगा । फौज वापिस ठिकानों पर गई ।
वैसे ही भीखणजी से हम चर्चा करें उनका पीछा करें तो एक तो उनके आगमों का अध्ययन बहुत है । काम पड़ने पर प्रमाण दिखला देते हैं । स्वयं आचार में दृढ़, फिर हमारे में रहे हुए हैं, वे हमारी अंदर की बातें जानते हैं अतः इनसे चर्चा करने से ये हमें ही छिन्न-भिन्न कर देंगे, इसलिए इनकी ओर ध्यान न दें । संयम • से चलते हैं तो हमारा ही यश होगा । लोग कहेंगे रुघनाथजी के शिष्य कठोर पथ पर चलते हैं । ऐसा कहकर जयमलजी ने तो पीछा नहीं किया । रुघनाथजी ने किया । स्थान-स्थान पर चर्चा की तब उनके ही श्रावक अधिक समझे ।
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५. फकीर वाला दुपटा
स्वामीजी नई दीक्षा लेने के लिए तैयार हुए। तब जोधपुर में जयमलजी के साथ चतुर्मास किया । जयमलजी के साधुओं के मन में श्रद्धा जम गई । थिरपालजी,' फतेचंदजी आदि तथा जयमलजी के मन में भी श्रद्धा बैठ गई है ये समाचार रुघनाथ जी ने सुने । तब सोजत के श्रावकों से कागद लिखवा कर जोधपुर भेजा और जयमलजी को कहलाया तुम्हारे भीखणजी की श्रद्धा जमी ऐसा सुना है । वे तुम्हारी संप्रदाय के अच्छे-अच्छे साधुओं तथा अच्छी-अच्छी साध्वियां को तो ले लेंगे। शेष जिनको तुमने बहुत हर्षोल्लास के साथ घर छुड़वाया है वे सब तुम्हें रोएंगे । नाम तो भीखणजी का होगा, संप्रदाय भीखणजी का कहलाएगा, तुम्हारा नाम भी विशेष रहेगा नहीं । फकीर वाला दुपटा होगा - एक फकीर को राजा ने दुपटा दिया । एक साहूकार ने अपने बेटे के विवाह प्रसंग पर फकीर से दुपटा मांगा। फकीर बोला-मुझे बारात में साथ ले जाओ तो दूं ।
तब साहूकार ने दुपटा लेकर फकीर को साथ में ले लिया। बारात गांव बाहर ठहरी । वर को देखने के लिए लोग आए । वर की प्रशंसा करते हुए वे कहते हैं--- गहने कपड़े सुन्दर हैं, वर रूपवान है पर दुपटा तो बहुत ही कमाल का है । दुपटे की लोग खूब प्रशंसा करते हैं । तब फकीर बोला-- दुपटा तो मुझ गरीब
का है ।
तब साहूकार ने मना किया-रे सांई ! बोल मत । आगे शहर में गए । फिर लोग वर की, गहनों, वस्त्रों की प्रशंसा करते हैं पर कहते हैं दुपटा तो वाह-वाह ही है । तब फकीर फिर बोला- दुपटा तो हम गरीब का है । फिर साहूकार ने टोकारे सांई बोल मत, इसी प्रकार तोरण के पास लोग दुपटे की प्रशंसा करते हैं तो फकीर वही बात दुहराता है। तब साहूकार ने सोचा- यह मना रहेगा, इसलिए दुपटे को फेंक दिया और कहा - यह तेरा दुपटा,
करने से तो नहीं अब यहां से रवाना