Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 340
________________ दृष्टांत : ८ ३११ ८. भीखणजी का साधु तो अकेला नहीं फिरता ___ स्वामीजी के दर्शन करने के लिए आते समय छोटे रूपचंद को रास्ते में ताराचंदजी स्वामी मिले । उन्होंने पूछा- - तुम किसके साधु हो ? तब रूपचंद बोलामैं भीखणजी का हूं। तब ताराचंदजी बोले-भीखणजी का साधु तो अकेला नहीं घूमता। तब रूपचंद बोला - मैं टोले/संघ से बाहर हूं। मेरे में साधुपन नहीं है। मुझे वंदना मत करो। ऐसा कह कर आगे चला। रास्ते में चोर आ धमका। तलवार निकाल कर बोला - कपड़े रख दे । तब रूपजी ने पात्रों को दिखाया। तब चोर बोला- कमर खोल । तब रूपजी भृकुटि चढ़ा, मूंछों का केश तोड़ कर बोला-इस पीपल के पेड़ से आगे जाने दूं तो असली गुरु का मूंडा ही नहीं। तब चोर भाग गया। उसके बाद रूपजी ने बड़ी रावलिया में जाकर स्वामी भीखणजी के दर्शन किये और वहां से इन्द्रगढ़ चला गया। उसका विस्तार तो बहुत है ।

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