Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 333
________________ ३०४ श्रावक दृष्टांत की श्रद्धा में मिल जाए। पाप बतलाए तो श्रद्धा समाप्त हो जाए। तब क्रोध में आकर नगरसेठ हूं। लोगों को डराता हूं पर मैं अकबक बोलने लगा - तुम समझते हो मैं नहीं डरता - इस प्रकार बोलने लगा । १६. साधर्मिक वात्सल्य का निषेध क्यों करते हो ? भगवानदासजी ने फिर रतनजी से पूछा - श्रावक को पोषण देने से क्या होता है ? रतनजी बोले - बेला ( दो दिन की तपस्या) के पारणे वाले श्रावक का पोषण करने से धर्म होता है । तब भगवानदासजी बोले - बेले के पारणे वाले साधु तथा बिना पारणा वाले साधु को देने से क्या होता है ? रतनजी बोले- धर्म होता है। तब भगवानदासजी बोले- फिर पारणे वाले तथा पारणे बिना ही श्रावक का पोषण करने को धर्म क्यों नहीं कहते हो ? और इस प्रकार सब श्रावकों के पोषण को धर्म कहते हो तो हमारे 'साधर्मिक वात्सल्य' का निषेध क्यों करते हो ? इस प्रसंग में भी सही उत्तर नहीं आया । २०. वह वैद्य बुद्धिहीन पीपाड़ में दौलजी लूणावत से चर्चा करते बोला- सन्निपात में आए रोगी को दूध मिश्री है । समय रतनजी क्रोध में आकर पिलाए तो सन्निपात अधिक बढ़ता तब दौलजी बोला वह वैद्य (हीयाफूट) बुद्धिहीन है । उसका चन्द्रबल इधरउधर हो गया । (बुद्धि बल घट गया) जो सन्निपात का रोग जानता है, फिर भी दूध मिश्री पिलाता है । २१. ये कौन-सी लेश्या का लक्षण है ? 'ऋणहि' गांव वाले जीवोजी को गुमानजी के शिष्य किशनदासजी ने कहासाधु में ३ भली लेश्या ही है, माठी ( खराब) लेश्या नहीं है । इतने में जोरजी कटारिया आया । तब किशनदासजी हल्की भाषा में बोला'ओ आयो जीवला रो भरमायौ' (यह आया जीवोजी का भ्रमित किया हुआ) तब जीवोजी बोला तुम यों बोलते हो ये कौनसी लेश्या का लक्षण है ? तब किशनदासजी चुप हो गया । २२. डोरी रखने में भी दोष ? संवत् १८७९ के पीपाड़ चतुर्मास में हेमजी स्वामी ने पाडिहारिक छुरी रात में रखी। भीखणजी स्वामी, भारमलजी स्वामी के समय में रखने की विधि थी । गृहस्थ को वापस दी जाने वाली पाडिहारिक वस्तु रखते थे, उसी हिसाब से रखी । तब वेषधारी ने खूब कदाग्रह किया। न होने वाले दोष बताने लगा । ऋणहि ग्राम वाले जीवोजी से कहा - गृहस्थ को वापस दी जाने वाली छुरी रात के समय पास में नहीं रखनी चाहिए । तब जीवोजी बोले- इसमें क्या दोष है ?

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