Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 323
________________ हेम दृष्टांत क्षेत्र में साधुओं का विरह इक्कीस हजार वर्ष निरंतर नहीं पड़ा। ऐसा जोड़ में कहा है और आगम में छेदोपस्थापनीय चारित्र का विरह जघन्य ६३ हजार का और उत्कृष्ट १८ कोड-क्रोड सागर का कहा है, तब भरत में थोड़े काल का विरह कैसे संभव हो सकता है ? यह बात सुनकर हेमजी स्वामी ने उनको उत्तर दिया। बाद में भारमलजी स्वामी से पूछा---'छेदोपस्थापनीय चारित्र का विरह जघन्य ६३ हजार वर्ष से कम नहीं, ऐसा कहा है तो यहां भरत क्षेत्र में चारित्र का यह विरह कैसे सम्भव है ? तब भारमलजी स्वामी बोले ---पांच भरत, पांच ऐरावत इन दश क्षेत्रों में एक ही समय में इक्कीस हजार वर्ष का छठा आरा, इक्कीस हजार वर्ष का पहला आरा और इक्कीस हजार वर्ष का ही दूसरा आरा, इस प्रकार ६३ हजार वर्ष छेदोपस्थापनीय चारित्र नहीं होता। दूसरे आरे के ३० वर्ष साढ़े आठ महीने के बाद तीर्थंकरों का जन्म होता है। वे ३० वर्ष घर में रहकर दीक्षा लेते हैं, उसके बाद छेदोपस्थापनीय चारित्र वाले साधु होते हैं इसलिए ६३ हजार वर्ष से कुछ अधिक विरह कहा गया है। यहां भरत में थोड़े काल तक साधुओं का विरह हुआ तो लगता है धातकी खंड के भरत ऐरावत तथा अर्ध पुष्कर के भरत ऐरावत में साध रहे होंगे। इस न्याय से छेदोपस्थानीय चारित्र का विरह निरंतर नहीं कहा गया है । तब हेमजी स्वामी बोले...-१० क्षेत्रों की रीति तो एक है, इस कारण से भरत में विरह हो तो १० क्षेत्रों में भी विरह होना चाहिए। तब भारमलजी स्वामी बोले --- यहां की द्रोपदी को धातकी खंड के भरत में ले गया। तो धातकी खंड के भरत में द्रोपदी कौन हुई और यहां कौन लाया ? इस न्याय से सभी बातें एक जैसी ही हों, यह आवश्यक नहीं। ३१. त्याग भंग क्यों करवाते हो? आमेट में टीकमजी के शिष्य जेठमल से बात करते हुए हेमजी स्वामी ने कहाकलाल (शराब बनाने और बेचने वाली जाति) के घर से पानी लाने का तो त्याग करो। तब जेठमल बोला-मैं तो नहीं लाता। हेमजी स्वामी- नहीं लाते हो तो त्याग करो।' तब जेठमल बोला--मुझे तो त्याग है । स्थान पर जाते ही टीकमजी ने कहायह त्याग क्यों किया? तब वापस आकर बोला--हेमजी ! वे त्याग मेरे मेवाड़ में रहूं तो है, पर मारवाड़ में रहूं तो नहीं है। तब हेमजी स्वामी बोले-तो क्या शील आदि दूसरे अनेक त्याग भी इस हिसाब से मेवाड़ में रहो तो है, मारवाड़ में नहीं। पहले त्याग करते समय आगार रखा नहीं, वे त्याग भंग नहीं करने हैं। ____ बाद में टीकमजी मिले तब कहा-हेमजी छल करके त्याग नहीं करवाने चाहिए।

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