Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 328
________________ दष्टांत : १०-१२ तब जेठोजी बोले-ऐसे मत कहो, ऐसे कहो, मस्तक में टकोरा मारा और पत्थर को वापस ले लिया फिर दूसरी बार नहीं मारेगा, इसमें क्या हुआ ? __लड्डू देने पर तो फिर मारेगा, सोचेगा फिर लड्डू देंगे। पर टकोरा मारा, उसको क्या हुआ ? तब निरुत्तर हो गए। १०. तुम्हारे से हम अधिक हुए फिर जेठोजी को उन्होंने कहा-दो रुपये देकर बकरा छुड़ाया उसको क्या हुआ ? तब जेठोजी बोले- हम तो पांच रुपये देकर भी छोड़ा देंगे। तुम्हारे सामने दस बकरों को मारे और वह एक पछेवड़ी देने पर दसों बकरों को छोड़ दूं, ऐसा कहे तो तुम उसे पछेवड़ी (चद्दर) दोगे या नहीं ? तब बोले- हम तो नहीं देंगे । (चद्दर देना) हमारा मार्ग नहीं है। तब जेठोजी बोले- यह धर्म हमारे पास तो है और तुम्हारे पास यह धर्म नहीं, इस अपेक्षा से तुम्हारे से हम अधिक हुए । इस धर्म की तुम्हारे कमी पड़ी। ऐसा कहकर निरुत्तर कर दिया। ११. कर्म कितने ? सं० १८६४ देवगढ़ में आसकरणजी का शिष्य चुतरोजी के पास आकर बोला-- मुझे चर्चा पूछो। तब चुतरोजी ने कहा-तुम्हें क्या चर्चा पूछे ? तब वह बोला--कुछ तो पूछो। तब चुतरोजी बोले-तुम्हारे कर्म कितने ? तब वह बोला-मेरे कर्म बारह हैं। तब चुतरोजी ने पूछा- कौन-कौन-से हैं ? तब उसने दो-तीन के तो नाम बताए, फिर बोला-आगे के नामों का पता नहीं, उसने आसकरणजी के पास आकर समाचार कहे--मैंने भीखणजी के श्रावकों से चर्चा की। तब आसकरणजी ने पूछा- क्या चर्चा की ? तब वह बोला--मुझे पूछा-तुम्हारे कर्म कितने हैं ? तब मैंने कहा- मेरे कर्म बारह हैं। तब आसकरणजी ने कहा-कर्म बारह कहां है ? आठ ही तोड़ने मुश्किल हैं। वापिस जाकर बतला-मेरे कर्म आठ ही हैं। तब वह वापिस जाकर बोला- मेरे कर्म आठ है, बारह कहा उसका 'मिच्छामि दुक्कडं' । तब चुतरोजी ने कहा-तुम्हारे गुरु के कर्म कितने ? . तब बोला-यह तो मुझे खबर नहीं। १२. पीटना कहां है ? सिरियारी वासी बोहराजी और खींवेसराजी को कोटा में अन्य सम्प्रदाय के श्रावक स्थानक में ले गए। उन्हें वेषधारियों ने पूछा-कहां रहते हो? . तब बोहराजी बोले-सिरियारी में रहते हैं ।

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