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श्रीवके दृष्टाव
५. भरमोलियों' की माला के समान
विजयचन्दजी पटवा पाली में लोकाचार में शामिल होकर आए। एक मोटा लोटा भर कर स्नान कर रहे थे तब बांवेचों ने कहा - विजैचन्द भाई ! तुम लोग ढूंढिया हो । पानी में पेसकर स्नान भी नहीं करते ।
तब विजयचंदजी ने कहा- मैं तुम्हें भरमोलियों की माला के समान जानता हूं । होली के दिनों में लड़कियां भरमोलियां बनाती है - यह मेरा खोपरा, यह मेरा नारियल - ये नाम दिये पर है तो गौबर का गौबर ।
वैसे ही तुमने मनुष्य जन्म पाया पर दया धर्म की पहचान बिना अज्ञानी जैसे
हो ।
६. दीपक जलाने से ही अन्धेरा मिटता है।
विजयचंदजी को किसी ने कहा- तुमने यह क्या मत पकड़ा है, हम तो हमारे ही धर्म को अच्छा समझते हैं । तुमने धर्म धारण किया इसका हमें तो कुछ पता नहीं लगता कि अच्छा है या बुरा ?
तब विजयचन्दजी ने कहा- घर में तो अन्धेरा और लाठी से पीटे तो अन्धेरा मिटता है । दीपक जलाने से ही अन्धेरा मिटता है, वैसे ही ज्ञान रूपी दीपक हृदय में जलाए तब मिथ्यात्व रूप अन्धेरा मिटे |
७. अच्छा मार्ग किसका ?
विजयचन्दजी को बहुत से लोगों के बीच पाली के कोर्ट में यति संवेगी, बाईस टोला, तेरापंथी इतनों में अच्छा मार्ग किसका ?
तब विजय चन्दजी ने कहा- जिस में अधिक गुण हो, वही मार्ग अच्छा है । ८. अन्न पुण्य हमारे और वस्त्र पुण्य तुम्हारे
रोयट में इतर सम्प्रदाय के साधु ने कहा - अन्न देने से पुण्य होता है, यह सूत्र में कहा हैं । तब भाइयों ने कहा - साझेदारी में पुण्य करेंगे। पछेवड़ी ( चद्दर) तुम्हारी और गेहूं हमारे । तुम कहो उसको गठरी में बांध कर दे दे । अन्न पुण्य हमारे और वस्त्र पुण्य तुम्हारे । तब उन्होंने कहा- हम तो साधु हैं । हमें सचित्त का स्पर्श ही कहां करना है ।
तब फिर स्वामीजी के श्रावक बोले - अचित्त का हमारी और दो रोटी तुम्हारी इस प्रकार साझेदारी में क्या बदल जाओ तो ।
बिलारा में जेठा डफरिया को इतर सम्प्रदाय के पत्थर से चींटियों को मार रहा था, उसको लड्डू देकर क्या हुआ
?
१. गौबर से बनाई हुई विभिन्न वस्तुओं की आकृतियां ।
'हाकम ने पूछा
पुण्य करें। पांच रोटी तो पुण्य करें तुम्हारा भरोसा
६. लड्डू देकर पत्थर को वापस लिया, उसको क्या हुआ ?
साधुओं ने कहा- कोई बच्चा पत्थर वापस लिया, उसको