Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 327
________________ १९८ श्रीवके दृष्टाव ५. भरमोलियों' की माला के समान विजयचन्दजी पटवा पाली में लोकाचार में शामिल होकर आए। एक मोटा लोटा भर कर स्नान कर रहे थे तब बांवेचों ने कहा - विजैचन्द भाई ! तुम लोग ढूंढिया हो । पानी में पेसकर स्नान भी नहीं करते । तब विजयचंदजी ने कहा- मैं तुम्हें भरमोलियों की माला के समान जानता हूं । होली के दिनों में लड़कियां भरमोलियां बनाती है - यह मेरा खोपरा, यह मेरा नारियल - ये नाम दिये पर है तो गौबर का गौबर । वैसे ही तुमने मनुष्य जन्म पाया पर दया धर्म की पहचान बिना अज्ञानी जैसे हो । ६. दीपक जलाने से ही अन्धेरा मिटता है। विजयचंदजी को किसी ने कहा- तुमने यह क्या मत पकड़ा है, हम तो हमारे ही धर्म को अच्छा समझते हैं । तुमने धर्म धारण किया इसका हमें तो कुछ पता नहीं लगता कि अच्छा है या बुरा ? तब विजयचन्दजी ने कहा- घर में तो अन्धेरा और लाठी से पीटे तो अन्धेरा मिटता है । दीपक जलाने से ही अन्धेरा मिटता है, वैसे ही ज्ञान रूपी दीपक हृदय में जलाए तब मिथ्यात्व रूप अन्धेरा मिटे | ७. अच्छा मार्ग किसका ? विजयचन्दजी को बहुत से लोगों के बीच पाली के कोर्ट में यति संवेगी, बाईस टोला, तेरापंथी इतनों में अच्छा मार्ग किसका ? तब विजय चन्दजी ने कहा- जिस में अधिक गुण हो, वही मार्ग अच्छा है । ८. अन्न पुण्य हमारे और वस्त्र पुण्य तुम्हारे रोयट में इतर सम्प्रदाय के साधु ने कहा - अन्न देने से पुण्य होता है, यह सूत्र में कहा हैं । तब भाइयों ने कहा - साझेदारी में पुण्य करेंगे। पछेवड़ी ( चद्दर) तुम्हारी और गेहूं हमारे । तुम कहो उसको गठरी में बांध कर दे दे । अन्न पुण्य हमारे और वस्त्र पुण्य तुम्हारे । तब उन्होंने कहा- हम तो साधु हैं । हमें सचित्त का स्पर्श ही कहां करना है । तब फिर स्वामीजी के श्रावक बोले - अचित्त का हमारी और दो रोटी तुम्हारी इस प्रकार साझेदारी में क्या बदल जाओ तो । बिलारा में जेठा डफरिया को इतर सम्प्रदाय के पत्थर से चींटियों को मार रहा था, उसको लड्डू देकर क्या हुआ ? १. गौबर से बनाई हुई विभिन्न वस्तुओं की आकृतियां । 'हाकम ने पूछा पुण्य करें। पांच रोटी तो पुण्य करें तुम्हारा भरोसा ६. लड्डू देकर पत्थर को वापस लिया, उसको क्या हुआ ? साधुओं ने कहा- कोई बच्चा पत्थर वापस लिया, उसको

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