Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 313
________________ २८४ हेम दृष्टांत होकर किया किन्तु सर्वानुभूति और सुनक्षत्र मुनि का संरक्षण वीतराग तथा लब्ध्युपजीवी न होने के कारण नहीं करेंगे यह अर्थ पढ़कर सुनाया। तब हेमजी स्वामी बोले-यहां तो सरागपन के कारण गोशालक को बचाया यह कहा है। तब जतीजी ने भी कहा- यहां तो सरागपन कहा है। तब टीकमजी बोले-भगवान् ने तपस्या की वह भी सरागपन में की। तब हेमजी स्वामी बोले- तपस्या सरागपन कहां है ? तपस्या तो क्षयोपशम भाव है। वीतरागपन का नमूना है। तब टीकमजी कुछ जवाब नहीं दे सके और निरुत्तर हो गए। ७. हम क्यों जाएं ? किसी ने भीखणजी स्वामी से कहा-लोढ़ों के उपाश्रय में हेमजी टीकमजी से चर्चा कर रहे हैं। लोग बहुत इकट्ठे हो गए हैं इसलिए आप पधारें। स्वामीजी ने कहा-हम क्यों जाएं ? जय होगी तो अच्छी ही है। अगर हार जाएगा, तो दूसरी बार चर्चा करता रहेगा। इतने में दो बालक जेतसी और इंदोजी दौड़ते हुए आकर स्वामीजी से बोलेउपाश्रय की चर्चा में हमारी विजय हुई । टीकमजी निरुत्तर हो गए। ८. भीखणजी उपकार को मानते हैं कस्तूरमल जालोरी ने प्रश्न पूछा-मूगों से भरी कोठी में बहुत से जीव पैदा हो गए, अब क्या करना चाहिए? तब टीकमजी ने कहा-जीवशाला में एक तरफ रख देने चाहिए । हेमजी स्वामी से पूछा- आप क्या कहते हैं ? ___मुनि हेम - हम तो कहते हैं-कोठी के हाथ ही नहीं लगाना, मूंगों का स्पर्श ही नहीं करना, यह कहकर अनुकंपा चौपी की 'द्रव्ये लाय लागी, भावे लाय लागी' इस ढाल की काफी गाथाएं सुनाई । उसमें कहा- "कूआ बार, लाय बारै का?, सो औ तौ उपगार कीयो इण भव रौ'-अर्थात् कुले में गिरे हुए अथवा लाय में फंसे हुए व्यक्ति को कोई बाहर निकालता है, तो यह इस भव संबंधी (लौकिक) उपकार है। इस पद को सुनकर लोग बोले- भीखणजी भी उपकार को मानते हैं । तब मुनि हेम ने कहाइस उपकार को तो मानते हैं । तब लोग खूब प्रसन्न हुए। इतने में चतुराशाह आकर बोले-अच्छी चर्चा हुई। परस्पर प्रेम रहा । अब पधारो। तब अपने स्थान पर पधार गए । स्वामीजी को सारे समाचार सुनाए। स्वामीजी सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने इस चर्चा को पत्र में लिख दिया। ६. तुम्हारी श्रद्धा तुम्हारे पास, हमारी श्रद्धा हमारे पास पाली के बाहर शौचार्थ गए उस समय हेमजी स्वामी से टीकमजी बोलेतुम्हारे अनुकंपा नहीं है । तुम जीवों को बचाते नहीं हो। तब हेमजी स्वामी ने कहा हमारे यहां अनुकंपा बहुत गहरी है। भगवान् ने जैसे कहा है, उसी तरह हम हिंसा छुड़ा देते हैं। तुम लोग कहते हो, हम बलपूर्वक

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