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हेम दृष्टांत रूपविजय-कहा तो है। इस चर्चा में भी निरुत्तर हो गया। तब रूपविजय फिर बोले-जीव मारने से नहीं मरता, जलाने से नहीं जलता, काटने से नहीं कटता, बाढ़ने से नहीं बढ़ता। इस प्रकार जब जीव नहीं मरता है, तब हिंसा कैसे लगे ?
तब हेमजी स्वामी बोले- भगवती सूत्र में कहा गया है-आधाकर्मी आहार आदि भोगने से छह काया का घाती कहा जाता है और निर्दोष भोगने से छह काया का दयावान कहा जाता है ।
अगर जीव मारने से न मरे, तो आधाकर्मी भोगने से छह काय का घाती क्यों कहा ? यहां भी रूपविजय निरुत्तर हो गए।
फिर हेमजी स्वामी ने कहा-अगर उघाड़े मुख बोलने में वायुकाय की हिंसा नहीं मानते हो तो मुख के आगे वस्त्र क्यों रखते हो ?
रूपविजय-हम तो वचन-शुद्धि के लिए मुखवस्त्रिका रखते हैं ।
हेमजी स्वामी बोले-वचन-शुद्धि अधूरी क्यों ? कभी तो मुखवस्त्रिका मुख के आगे रहती है और किसी समय पूरी यतना नहीं रहती, उघाड़े मुख बोलते हो, इसलिए वचन-शुद्धि भी पूरी नहीं। ___फिर हेमजी स्वामी बोले ---गौतम ने भगवान महावीर से पूछा---इन्द्र भाषा बोलता है, वह सावद्य या निरवद्य ? भगवान् ने कहा-इन्द्र उघाड़े, मुख बोले वह तो सावद्य और मुख के आगे हाथ या वस्त्र रखकर बोले वह निरवद्य।" भगवती में यह बात कही है या नहीं?
रूपविजय बोला- कही तो है। यहां भी रूपविजय निरुत्तर हो गया। फिर हेमजी स्वामी ने प्रश्न पूछा-नव पदार्थ में सावध कितने, निरवद्य कितने ? सावध निरवद्य नहीं, कितने ?
नव पदार्थ में जीव कितने ? अजीव कितने ? . नव पदार्थ किसे कहते हैं ? छव द्रव्य किसे कहते हैं ?
तब रूपविजय बोला - इसका क्या ? धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय-ये तो पुद्गल हैं।
तब हेमजी स्वामी ने कहा- लो 'मिच्छामि दुक्कडं' धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय पुद्गल कहां है ? पुद्गल तो रूपी है और ये अरूपी है।
फिर रूपविजय बोला--- काल जीव-अजीव दोनूं है।
हेमजी स्वामी बोले - दूसरा 'मिच्छामि दुक्कडं' फिर लो। काल जीव अजीव दोनों कहां है ? जीव अजीव दोनों पर काल वर्ततो है पर काल तो अजीव है। यह सुन रूपविजय गर्म हो गया। हाथ कांपने लग गए । तब हेमजी स्वामी बोले तुम्हारे हाथ कांप क्यों रहे हैं ? हाथ तो चार कारणों से कांपते हैं-१. कंपन वायु से, २. क्रोध के कारण, ३. काम/विषय की प्रेरणा से अथवा ४. चर्चा में पराजित होने से यह सुनकर विशेष रोष में आ गया। लोग बहुत इकट्ठे हुए। इतने में इधर के श्रावक्र भी आये । माईदासजी खैरवा वाला बोला अब उठो। हेमजी स्वामी जब उठने लगे तब रूपविजय ने पल्ला पकड़ लिया और बोला-चर्चा करें।