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दृष्टांत : २५७-२५८
२२१ छह पर्याप्तियां और दस प्राण जीव हैं या अजीव ?" ____तब स्वामीजी बोले-"जिस विषय की चर्चा करने से भ्रम पैदा हो, वैसी चर्चा करनी ही नहीं चाहिए। और भी बहुत विषय हैं चर्चा करने के लिए।" यह कह कर उन्हें समझा दिया, उनकी खींचातान को समाप्त कर दिया ।
२५७. सांसारिक मोह की पहिचान सांसारिक मोह की पहिचान के लिए स्वामीजी ने दृष्टांत दिया -"कोई व्यक्ति ब्याह करने के बाद छोटी अवस्था में ही मर गया।" तब लोगों में बहुत भयंकर स्थिति बन गई। हाय-हाय करते हुए लोग बोले-“बेवारी लड़की का क्या हाल होगा ? बेचारी बारह वर्ष की अवस्था में ही विधवा हो गई ! यह किस प्रकार दिन काटेगी ?" इस प्रकार लोग विलाप करने लगे।
स्वामीजी बोले -"लोग सोचते हैं कि ऐसा करने वाला उसकी दया कर रहा है, पर वास्तव में वह उस लड़की के काम-भोग की बांछा कर रहा है। वे जानते हैं कि यदि वह लड़का जीवित रहा होता तो इसके दो-चार बच्चे-बच्चियां हो जाते । यह लड़की सुख का भोग करती, तो अच्छा रहता-वे इस प्रकार की बांछा करते हैं । पर वे यह नहीं सोचते कि यह बहुत काम-भोग का सेवन करती, तो अधोगति में जाती। इसकी उन्हें कोई चिन्ता नहीं और वह लड़का किस गति में गया, उसको भी उन्हें कोई चिन्ता नहीं । जो ज्ञानी पुरुष होते हैं वे जीवन या मरण का हर्ष या शोक नहीं करते।
२५८. संतोष हो गया हेमजी स्वामी जब घर में थे, तब की घटना है। उनकी बहिन को मामा अपने घर ले गया। हेमजी स्वामी चिन्ता करने लगे। उन्होंने भीखणजी स्वामी के पास आकर कहा - "आज तो मेरा मन बहुत उदास है । बहिन की याद बहुत सता रही है। मन में ऐसी आ रही है कि घुड़सवार को भेजकर उसे वापस बुला लूं।" ।
तब स्वामीजी बोले---"सांसारिक सुख ऐसे ही क्षणिक होते हैं । संयोग का वियोग हो जाता है। शारीरिक और मानसिक दुःख पैदा हो जाता है। इसीलिए भगवान् ने मोक्ष के सुखों को शाश्वत और स्थिर कहा है । वहां सुखों का कभी विरह नहीं होता।" स्वामीजी का यह वचन सुन हेमजी स्वामी के मन में संतोष हो गया।
२५६. यह भावना मन में तो आई थी पाली की घटना है । एक साध्वी ने वेला किया। बाद में पारणा की आज्ञा ले मृत्यु-भोज वाले घर से लपसी ले आई । वह स्वामीजी को दिखाई । स्वामीजी ने मन में विचारा और उसे पूछा-"क्या तुमने यह बेला इस लपसी के लिए ही तो नहीं किया है ? सच बताओ।"
तब साध्वी ने कहा-"स्वामीनाथ ! उसकी भावना मन में आई तो थी।"
तब स्वामीजी ने सब साधु-साध्वियों के लिए नियम बना दिया कि मृत्यु-भोज वाले घर में दूसरे दिन भी गोचरी के लिए न जाए । आचार्य के पास साधु-साध्वियां हों उनके लिए यह नियम लागू नहीं किया गया।