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भिक्षु दृष्टांत
है-जम्मे की रात जगाओ और कामड़ी को भोजन कराओ।
यदि गुरु 'मुल्ला' होता है, तो वह 'अल्लाह' को देव बताता है और धर्म बताता है-हलाल करना।
यदि गुरु निर्ग्रन्थ मिलता है, तो वह असली अर्हत् को देव बताता है और धर्म बताता है- भगवान् की आज्ञा में।
इस दृष्टान्त के अनुसार जैसा गुरु मिलता है, वैसे ही देव और धर्म को वह बतलाता है।
२६४. हमें क्रिया से क्या मतलब कोई अज्ञानी कहता है- "हम तो रजोहरण और मुखवस्त्रिका को वंदना करते हैं, हमें क्रिया से क्या मतलब ?"
___इस पर स्वामीजी बोले- यदि रजोहरण को वंदना करने से कोई तरता है, तो रजोहरण तो ऊन से बनता है और ऊन भेड़ से पैदा होती है। यदि रजोहरण को वंदना करने से कोई तरता है, तो उसे भेड़ के पैर पकड़ना चाहिए-हे माता ! तू धन्य है, तुमसे रजोहरण बनता है। ___और यदि मुखवस्त्रिका को वन्दना करने से कोई तरता है, तो मुखवस्त्रिका होती है कपास से और कपास 'बनी' से बनता है। यदि मुखवस्त्रिका को वंदना करने से कोई तरता है, तो उसे 'बनी' को वंदना करनी चाहिए-तू धन्य है, तुमसे मुखवस्त्रिका होती है।
२६५. भीतर तांबा, ऊपर चांदी का झोल कोई कहता है- "ये वेषधारी साधु दोष का सेवन करते हैं, फिर भी गृहस्थ की अपेक्षा तो अच्छे हैं ।" उस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया--"एक साहूकार की दुकान में सवेरे कोई पैसा ले कर आया और कहा-शाहजी ! पैसे का गुड़ है ?' तब दुकानदार ने उस पैसे को नमस्कार कर उसे ले लिया। उसने सोचा-सवेरे-सवेरे तांबे के सिक्के से व्यवसाय का प्रारम्भ हुआ है।'
दूसरे दिन वह रुपया लेकर आया और कहा-शाहजी ! रुपये की रेजगी है ?" तब दुकानदार ने रुपये को नमस्कार कर उसे ले लिया। रेजगी गिन उसे दे दी। मन में प्रसन्न हुआ--."आज चांदी के सिक्के का दर्शन हुमा।" ___ तीसरे दिन वह खोटा रुपया लेकर आया और बोला-'शाहजी ! रुपये की रेजगी है ?' तब वह दुकानदार प्रसन्न होकर बोला-'मेरी दुकान पर कल वाला ही ग्राहक आया है। उसने रुपया हाथ में लेकर देखा, तो वह खोटा था। भीतर तांबा और ऊपर चांदी। वह उस रुपये को फेंक कर बोला-'सवेरे-सवेरे नकली रुपये का दर्शन हुमा ।'
तब वह बोला-'शाहजी ! आप नाराज क्यों हुए ? परसों मैं पैसा लाया था, तब तुमने तांबे के सिक्के को नमस्कार किया था; कल मैं रुपया लाया था, तब तुमने चांदी के सिक्के को नमस्कार किया था; और इसमें तो तांबा और चांदी दोनों हैं, इसलिए इसे तुम दो बार नमस्कार करो।'