________________
दृष्टांत : ३०७-३१०
२३९
तब स्वामीजी बोले-निशाने पर चोट लगती है। उसके बिना चोट कहां की जाए ? ___ इसी प्रकार मिथ्यात्व को नष्ट करने के लिए हम हेतु, युक्ति और दृष्टांत का प्रयोग करते हैं।
३०७. यह मार्ग कब तक चलेगा? किसी ने पूछा- "आपका ऐसा संकरा मार्ग कितने वर्षों तक चलेगा ?"
तब स्वामीजी बोले-.--"सिद्धांत और आचार में जब तक दढता रहेगी. वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं होगा; साधुओं के लिए (आधाकर्मी) स्थानक नहीं बनेंगे; तब तक मार्ग भली-भांति चलेगा। .
साधु के निमित्त स्थानक बनने, वस्त्र और पात्र की मर्यादा का अतिक्रमण करने, विहार-कल्प का उल्लंघन कर एक स्थान पर रहने से शिथिलता आती है। जब तक मर्यादा के अनुसार चलते हैं; तब तक शिथिलता नहीं आती है।
३०८. केवल नाम का अन्तर है आधाकर्मी स्थानक में रहते हैं और अपने आपको गृहत्यागी कहते हैं, इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया -"जिस प्रकार यति के उपाश्रय, मथेरन (महात्मा) के पोशाल (पाठशाला) फकीर के तकीया, भक्तों के अस्थल, फुटकर भक्तों के मढी, कनफड़ों के आसन, संन्यासी के मठ, रामस्नेहियों के रामद्वारा, जिसे कहीं-कहीं राममोहल्ला कहा जाता है, गृहस्थ के घर, सेठ के हवेली, गांव के ठाकुर के 'कोटड़ी' या 'रावला', राजा के महल या दरबार, साधुओं के स्थानक-इन सब में नाम का अन्तर हैं, वास्तव में तो सब के सब घर हैं।
कहीं 'कस्सी' चली है, कहीं कुदाल चली है; किन्तु छह काय के जीवों की हिंसा तो वैसी की वैसी हुई है।"
३०९. वे बहुत खपते हैं अमरसिंहजी के पूर्वज बोहतजी से किसी ने पूछा- 'शीतलजी के साधुओं में क्या साधुपन है ?'
तब बोहतजी बोले-'उनमें कहां से आएगा, मैं अपने में भी नहीं मानता ?'
तब फिर पूछा-'क्या भीखणजी में साधुपन है ?' - तब बोहतजी ने कहा-'उनमें तो होना सम्भव है, क्योंकि वे बहुत खपते
... ३१०. भीखणजी अच्छे साधु हैं
आचार्य जयमलजी पुर में व्याख्यान दे रहे थे। बहुत परिषद के बीच किसी गृहस्थ ने पूछा-- परिषद् के बीच मिश्र भाषा बोलने से महायोहनीय कर्म बंधता है, आप साफ-साफ बताएं, भीखणजी साधु हैं या असाधु ?
तब आचार्य जयमलजी बोले- 'भीखणजी अच्छे साधु हैं, पर वे हमें 'वेषधारी' कहते हैं, इसलिए हम उन्हें निह्नव कहते हैं।'