Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

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Page 260
________________ २३१ दृष्टांत : २८९-२९० पर शुद्ध मान्यता और आचार के बिना कोई काम सिद्ध नहीं होता। २८६. यह दिवाला कैसे पूरा होगा ? किसी ने कहा-वेषधारी साधु भी एक मासिक उपवास आदि तपस्या करते हैं; लोच कराते हैं, धोवन और गरम पानी पीते हैं। क्या उनके यह क्रिया व्यथं ही जाएगी? ___तब स्वामीजी बोले-."किसी ने लाख रुपया का दिवाला निकाला। उसके बाद एक पैसे का तेल खरीद कर लिया और उसका पैसा चुका दिया। वह 'एक पैसे' का साहूकार होगा । एक रुपए का गेहूं लाया और रुपया चुका दिया; वह 'एक रुपए' का साहूकार होगा। इस प्रकार पैसे व रुपए का साहूकार हुमा, पर लाख रुपए का दिवाला निकाला, उस दृष्टि से वह साहूकार नहीं।" इसी प्रकार पांच महाव्रतों को स्वीकार कर जो निरन्तर साधु के निमित्त बने हुए स्थान में रहते हैं, इस प्रकार के और भी अनेक दोषों का सेवन करते हैं, उनका प्रायश्चित्त नहीं करते, यह बड़ा दिवाला है । यह लोच और तपस्या के द्वारा कहां पूरा होगा ? ____एक मासिक उपवास की तपस्या की जाती है और उसकी भलीभांति पालना की जाती है । उस तपस्या की दृष्टि से वह साहूकार है, पर पांच महाव्रतों में जो दोष लगाया गया, वह दिवाला उस तपस्या से कैसे पूरा होगा? २६०. दान मुख्यतः कायिक प्रयोग है किसी ने कहा -“कोई मुख पर वस्त्र आदि दिए बिना बोलकर साधु को दान देता है, तो वह लेता है । और दाता का अनाज के एक दाने पर पैर टिक जाता है, तो उसके हाथ से साधु दान नहीं लेता और उसके घर से उस दिन के लिए भिक्षा अग्राह्य हो जाती है।" तब स्वामीजी बोले-“साधु को कोई दान देता है, उसमें मुख्यतः कायिक प्रयोग होता है। चलते, उठते, बैठते, कायिक प्रयोग द्वारा अयतना (हिंसा) करके कोई साधु को दान देता है, दान देते समय कोई फूंक मार देता है और साधु ने उसके हाथ से भिक्षा लेनी स्वीकार कर ली है, तो उसके घर से उस दिन के लिए भिक्षा अग्राह्य हो जाती है। और यदि साधु ने उसके हाथ से भिक्षा लेना स्वीकार न किया हो और उठते समय उसने अयतना (हिंसा) की हो, तो उसी के हाथ से भिक्षा अग्राह्य होती है। ___ मुंह पर वस्त्र आदि दिए बिना बोलना वाचिक प्रयोग है। इस प्रकार बोलने से अयतना (हिंसा) होती है, पर उससे उस घर की तथा उस दाता के हाथ से भिक्षा लेना अग्राह्य नहीं है । औपपातिक सूत्र में एक प्रकार का अभिग्रह है कि कोई दाता निंदा करता हुआ भिक्षा दे, तभी वह उसके हाथ से ली जा सकती है। तो जो निन्दा करता है, गाली बकता है, वह कौनसी यतना करेगा ? इस दृष्टि से वाचिक अयतना के कारण दाता के हाथ से भिक्षा अग्राह्य नहीं होती। इसलिए उसके हाथ से भिक्षा लेने में कोई दोष नहीं हैं।

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