________________
२१२
भिक्खु दृष्टांत 'हूंकार' से ही छह काया के जीवों को मरा देता है। यह अनबोला रहकर ही ऊधम मचा देता है, तो बोलता तो न जाने क्या कर डालता ?"
स्वामीजी बोले-"जैसा उस मौनी बाबा का मौन था, वैसा ही इनका सावध दान के विषय में मौन है। ये मुख से तो 'मौन' कहते जाते हैं और श्रावक-श्राविकाओं को भोजन कराने में पुण्य और मिश्र की आम्नाय-मान्यता बतलाते हैं। लड्डू खिलाकर दया पालने की प्ररूपणा करते हैं।"
२३२. खोल कर देने पर नहीं लेते अमुक संप्रदाय के साधु स्वय किंवाड़ बंद करते हैं और खोलते हैं, किन्तु गृहस्थ किंवाड़ खोल कर आहार देते हैं, तो वे नहीं लेते, इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया
जैसे कोई आदमी पर-गांव जा रहा था। उसे कोई भंगी छू गया। .. उससे पूछा--"तुम कौन हो?"
तब उसने कहा- "मैं भंगी हूं।" तब उस भादमी ने कहा- "तुमने मेरा भोजन छू लिया।"
इस प्रकार वे परस्पर गाली-गलौज करने लगे और गुत्थंगुत्था हो गए । वह आदमी भंगी को नीचे गिरा ऊपर बैठ गया।
भंगी ने कहा- 'तू मुझे छोड़।' तब वह बोला-'मैं तुझे नहीं छोडूंगा।' तब भंगी ने कहा- 'तूं जैसे कहेगा, वैसे करूंगा । तूं मुझे छोड़ दे।'
तब वह बोला-'तुम्हारी पत्नी अपने हाथ से लीप-पोत कर 'चोका' बनाए, कोरे घड़े में पानी ला, महाजन की दुकान से आटा ला, जैसी मेरी रोटी है, वैसी-कीवैसी रोटी बना कर दे, तो मैं तुझे छोड़ सकता हूं।' __तब भंगी ने उसकी सारी शर्ते स्वीकार कर लीं। जैसा उसने कहा, उसी रीति से भंगी ने अपनी स्त्री से रोटी बनवा दी। ___जो समझदार होगा, वह उस आदमी को मूर्ख मानेगा, जिसने भंगी द्वारा छुई हुई रोटी तो नहीं खाई, किन्तु उसके द्वारा बनाई हुई रोटी खा ली। इससे उसे लोग विवेक-शून्य मानेंगे।
"इसी प्रकार गृहस्थ किंवाड़ खोल कर आहार देते हैं, वह तो नहीं लेते और अंधेरी रात में स्वयं किंवाड़ बंद करते हैं भोर खोसते हैं, उसकी मन में शंका भी पैदा नहीं होती।
२३३. दोनों लोक बिगड़ जाते हैं कुछ कहते हैं-"रोग आदि कारण की स्थिति में साधु को अशुद्ध आहार ले लेना चाहिए मोर उस स्थिति में माहार देने गले श्रावक को पाप अल्प होता है, निर्जरा ज्यादा होती है।"
तब स्वामीजी बोले-"राजपूत का बेटा संग्राम करते-करते भाग जाता है तो उसे शूर कैसे कहा जाए ? उसे राजा जागिरदारी कैसे भोगने देगा? लौकिक वातावरण में उसकी प्रतिष्ठा कैसे सुरक्षित रहेगी ?"