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हो गई । उसके बाद उसने भौंकना बंद कर दिया । "
तब स्वामीजी बोले --- " कुत्तिया गिरी, वहां जगह का प्रमार्जन किया या नहीं ?" तब वे गृहस्थ बोले- "तुम वहां जाकर उसका प्रमार्जन करो । व्यर्थ ही दोष बतलाते हो ।
ऐसे मूर्ख थे वे गृहस्थ !
भिक्खु दृष्टांत
५५. शंका है तो चर्चा करें
पाली की घटना है । मयारामजी गोचरी में जितनी रोटियां मंगाई थीं, उनसे आठ रोटियां अधिक ले आए।
स्वामीजी ने गिन कर कहा - "आहार मंगाया, उससे अधिक लाए हो ।" तब मयारामजी बोला - "जो अधिक हो, उसे यहां रख दो, यहां रख दो ।" तब स्वामीजी ने आठ रोटिया निकाल उसे दे दीं। मयारामजी ने दूसरे साधुओं को लेने का अनुरोध किया, पर किसी ने उन्हें लिया नहीं ।
तब वह बोला - " इन रोटियों को विधिवत् एकान्त में डाल देने का विचार है।" स्वामीजी ने कहा - " ऐसा करो तो दूसरे दिन विगय (दूध, दही, आदि) का वर्जन कर देना ।"
तब आक्रोश में आकर अंट-संट बोलने लगा - " मैं तो ऐसे आचार्य को मान्य नहीं करूंगा।” उसने अंट-संट बोलते हुए कहा- "नव पदार्थों में पांच जीव और चार अजीव, यह मान्यता ही मिथ्या है।" उनमें एक जीव और शेष आठ अजीव हैं ।" तब स्वामीजी क्षमापूर्वक उसे आश्वस्त कर आहार को समेट, बोले -आओ, तुम्हें शंका है, तो उसकी चर्चा करेंगे ।" ऐसा कह कर वे उसी समय धूप में ही विहार कर गये ।
उत्तराध्ययन सूत्र के आधार पर उसकी शंका मिटा दी । प्रायश्चित्त दिया और मुनि वेणीरामजी के पास रख दिया। कुछेक दिनों के बाद वह संघ से अलग हो गया । ५६. सीख किसे ?
स्वामीजी शौचार्थ जा रहे थे । एक वेषधारी साधु साथ हो गया । उसे हरियाली पर चलता देख स्वामीजी बोले- "यह साफ मार्ग रहा, फिर हरियाली पर क्यों चलते हो ?"
तब वह बोला - " मेरे बारे में यदि किसी को यह कहा, तो मैं गांव में जाकर कहूंगा कि भीखणजी हरियाली पर शौच निवृत्ति कर रहे थे ।
५७. मैं नहीं बता सकता
यां और पीपाड़ के बीच में एक वेषधारी साधु मिला। स्वामीजी को एकान्त में ले गया। थोड़ी देर से वापस आ गए। तब मुनि हेमराजजी ने पूछा - "स्वामीनाथ ! . उसने आप से क्या पूछा. ?"
स्वामीजी बोले--" उसने अपने दोषों की आलोचना की ।"
मुनि हेमराजजी ने पूछा - " किन दोनों की आलोचना की थी ?" तब स्वामीजी बोले -"मैं नहीं बता सकता ।"