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दृष्टांत : १६२-१६४
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हिंगुल बोझिल भी होता है। काला रंग हल्का होता है। उस पर से चिकनाहट उतारना आसान होता है । इत्यादि अनेक कारणों से पात्रों को कई रंगों से रंगा जाता है। सूत्र में अनेक रंगों से रंगने का निषेध नहीं है ।
१६२. खामियां बताते रहते
वेणीरामजी स्वामी छोटी अवस्था में थे तब वे खामियां बताते रहते - स्वामीजी ! आपने बिना देखे और बिना प्रमार्जन किए पैर पसार दिए ।
एक दिन वेणीरामजी स्वामी कुछ दूर बैठे थे । स्वामीजी ने गुप्तरूप से प्रमार्जन कर पैर पसारे और साधुओं से कहा- देखो, वह बेणा दूर बैठा देख रहा है ।
इतने में वेणीरामजी स्वामी बोल उठे वह देखो, स्वामीजी ने बिना देखे पैर पसार दिए ।
तब स्वामीजी और पास बैठे दूसरे साधु मुस्कराने लगे। साधुओं ने कहास्वामीजी ने प्रमार्जन कर पैर पसारे हैं ।
तब वेणीरामजी शर्माये हुए स्वामीजी के पास आ पैरों में पड़ गए । १६३. ऐसे थे विनम्र वेणीरामजी
पीपाड़ की घटना है वेणीरामजी स्वामी दूसरी दूकान में बैठे थे । स्वामीजी ने उन्हें - भो वेणीराम ! ओ वेणीराम ! - इस प्रकार दो-तीन बार पुकारा । पर वे वापस बोले नहीं ।
तब स्वामीजी ने गुमानजी लुणावत से कहा- लगता है बेणां संघ से अलग
होगा ।
तब गुमानजी वेणीरामजी स्वामी के पास जाकर बोले-आपको स्वामीजी ने पुकारा, आप बोले नहीं, इस पर स्वामीजी ने कहा- लगता है बेणा संघ से अलग होगा ।
यह सुनकर वेणीरामजी स्वामी भयभीत हो गए और स्वामीजी के पास आ उनके चरणों में गिर पड़े ।
तब स्वामीजी बोले - रे मूर्ख ! पुकारने पर वापस बोलता नहीं है ?
तब वेणीरामजी स्वामी विनम्रता के साथ बोले- महाराज! मैंने सुना नहीं । उन्होंने बहुत विनम्रता की ।
ऐसे थे विनीत वेणीरामजी स्वामी और ऐसे थे शक्तिशाली स्वामीजी ।
करूं ।
१६४. ऐसे थे स्वामीजी अवसरज्ञ
वेणीरामजी स्वामी ने कहा- मैं थली प्रदेश में जाऊं और चन्द्रभानजी से चर्चा
तब स्वामीजी बोले- तुम्हें उनसे चर्चा करने का त्याग है। ऐसा ही अवसर देखा, इसलिए वह त्याग करा दिया। ऐसे थे स्वामीजी अवसरज्ञ ।
१६५. संभव है आंखें गवां बैठें
मेंणाजी साध्वी और वेणीरामजी को लक्ष्य कर स्वामीजी ने कहा- - ये आंखों में