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दृष्टांत : ९१
१५५ तब स्वामीजी बोले- "इससे भी ज्यादा तेज क्षेत्र हो तो बता दो।"
ऋषि गुलाबजी आगमों की बत्तीसी को कंधों पर उठाए घूमते थे । परन्तु मान्यता सही नहीं थी। स्वामीजी ने उनसे पांच महाव्रतों के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के बारे प्रश्न किए।
तब बोले-“ये सब पन्ने में लिखे हैं।"
स्वामीजी बोले-''पन्ना फट जाएगा तो? साधुपन तुम पालते हो, या पन्ना पालता है ?" इत्यादि प्रश्नों से वे बहुत उलझन में फंस गए।
० ये हमारे पहले के गुरु हैं कालान्तर में स्वामीजी गोगुन्दा पधारे। वहां के भाइयों से चर्चा कर उन्हें तेरापंथ का अनुयायी बना लिया। यह सुन कर ऋषि गुलाबजी वहां आए और स्वामीजी से चर्चा करने लगे । तब भाई बोले -"महाराज ! इनसे तो चर्चा हम करेंगे। ये हमारे पहले के गुरु हैं ।" फिर भाइयों ने ऋषि गुलाबजी से चर्चा कर उन्हें निरुत्तर कर दिया।
___ तब वे क्रोध में आकर बोले- गोगुंदा के भाई ठीकरी के रुपए हैं ।" बहुत खिन्न होकर चले गए।
गोगुन्दा के श्रावकों ने १८२२ पन्नों के भगवती सूत्र का दान दिया और प्रज्ञापना सूत्र का भी।
६१. एक भीखन बाकी बचा पाली का प्रसंग है । संवेगी साधु खंतिविजयजी ने आचार्य रुघनाथजी से चर्चा की-"किसी गृहस्थ ने साधुओं को भिक्षा में मिश्री के बदले नमक दे दिया तो क्या किया जाय ?'
___ खंतिविजयजी बोले- "वह साधु के पात्र में आ गया इसलिए उसे खा लेना चाहिए।"
आचार्य रुघनाथजी ने कहा--"या तो वह नमक देने वालों को वापस कर दिया जाए या उसका व्युत्सर्ग कर दिया जाए।"
उन्होंने एक ब्राह्मण को मध्यस्थ बनाया था। उसने कहा-"वह खाना चाहिए।"
फिर आचार्य रुघनाथजी ने आचारांग की प्रति निकाली। उस समय खंतिविजयजी ने आचार्य रुघनाथजी के हाथ से पन्ना छीन, उसे फाड़ डाला। बहुत लोगों के बीच उन्होंने आचार्य रुघनाथजी की अवमानना की। तब खंतिविजयजी के पक्ष की बहिनें गाने लगीं
"ज्ञानी गुरु जीत गए, जीत गए । सूत्र के प्रताप से हमारे ज्ञानी गुरु जीत गए।" ___ तब आचार्य रुघनाधजी बहुत उदास हो गए। फिर उन्होंने अपने श्रावकों से कहा"इन खंतिविजयजी को जीत सके वैसा तो भीखण ही है। हम 'बाईस टोले' सच्चे हैं, उन्हें भी वह असत्य ठहरा देता है, तो यह तो साक्षात् तांबे का रुपया है, इसे हटाना तो बहुत सरल है।