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भिक्खु दृष्टांत
१०६. मेरी मां ने अधिक आंसू बहाए थे
स्वामीजी आचार्य रुघनाथजी के संप्रदाय से अलग हुए तब आचार्यजी की आखों आंसू छलक पड़े। तब स्वामीजी ने सोचा- इनकी अपेक्षा घर छोड़ते समय मेरी मा अधिक आंसू बहाए थे। ऐसा सोच उन्होंने अभिनिष्क्रमण कर दिया । ११०. ढंढण के अंतराय था
संवत् १८५९ की घटना है । देवगढ़ में चौदह साधु और चौदह साध्वियों के साथ स्वामीजी विराज रहे थे। वहां तीन वेशधारी साधु आकर बोले- भीखणजी ! हम तीन साधु हैं, उन्हें भी पूरा आहार पानी नहीं मिलता तो आप इतनी संख्या में हैं तो आपको आहार- पानी कैसे मिलता है ?
तब स्वामीजी बोले- द्वारका में हजारों साधुओं को आहार- पानी मिलता था, पर ढंढण मुनि के अंतरराय था, इसलिए उन अकेले को आहार पानी मिलना कठिन हो रहा था ।
१११. तंबाकू अच्छी तो है नहीं
स्वामीजी गृहस्थावस्था में थे तब उपहार आदि लेकर निमंत्रण देने के लिए राजपूत के साथ किसी दूसरे गांव जा रहे थे ।
तब राजपूत बोला- भीखणजी ! तंबाकू के बिना अब मैं आगे नहीं चल
सकता ।
तब स्वामीजी बोले - ठाकर साहब ! आगे चलें, सूर्य अस्त होने वाला है । राजपूत बोला- तंबाकू के बिना अब तो नहीं चला जा सकता ।
तब स्वामीजी ने कुछ पीछे रह, जंगली कंडे को महीन पीस उसकी पुड़िया बना ली और कहा -ठाकर साहब ! अच्छी तंबाकू तो है नहीं, ऐसी-वैसी है ।
तब राजपूत ने एक चिऊंटी भर कर उसे सूंघा और कहा ठीक ही है, काम चल
जाएगा ।
तब स्वामीजी ने वह पुड़िया राजपूत को सौंप दी। इस चातुर्य से वे कुशल-क्षेम के साथ अपने स्थान पर पहुंच गए।
११२. वह बुद्धि किस काम की
स्वामीजी ने सिरियारी में चतुर्मास किया । जोधपुर नरेश विजयसिंहजी नाथद्वारा जा रहे थे । वर्षा के कारण सिरियारी में ठहरे। उनके कुछ उच्च अधिकारी वहां स्वामीजी के दर्शन करने आए और प्रश्न पूछने लगे । पहले मुर्गी हुई या अंडा ? पहले घन या अहरन ? पहले बाप हुआ या बेटा ? इत्यादि अनेक प्रश्नों के युक्तिसंगत उत्तर स्वामीजी ने दिए । तब वे अधिकारी प्रसन्न होकर बोले- ये प्रश्न हमने बहुत स्थानों पर पूछे, पर ऐसे उत्तर किसी ने नहीं दिए। आपकी बुद्धि तो ऐसी है कि आप किसी राजा के मंत्री होते तो अनेक देशों का राज्य उस राजा के अधीन कर देते ।
तब स्वामीजी बोले – मर कर वह कहां जाता है ?
अधिकारी बोले- जाता तो नरक में ही ।
तब स्वामीजी बोले – वही बुद्धि अच्छी है जो जिनधर्म का सेवन करती है। बह