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भिक्खु दृष्टांत
छन्द अनभय कथनी रहिणी करणी अति आठ्इ कर्म जिपं अधिकारी। गुणवंत अनंत सिद्धत कला गुण प्राकम पोहोच विद्या पुण भारी। शास्तर सार बत्तीस जाण सहु केवल ज्ञानो का गुण, उपकारी । पंचइंद्री कू जीत न मानत पाखंड साध मुनिंद्र बड़ा सतधारी। साधवा मुक्ति का वास बन्दा सहु भिक्खम स्वाम सिद्धत है भारी। स्वामी परभव के साधन साचहै वाचहै सूत्र कला विस्तारी। तेरा हो पंथ साचा त्रिकं लोक में नाग सुरेन्द्र नमैं नरनारी। सुणि बात है साच सिद्धत सुज्ञान को बोहत गुणी करणी बलिहारी।
पृथ्वी के तारक पंचमें आर में भीषण स्वामी का मारग भारी ॥१॥
इन छंदों को सुन बावेचा लोग वहां से चुपचाप सरक गए। स्वामीजी के श्रावक बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने खुशी में झूमते हुए शोभाचंद को लगभग २०-२५ रुपयों का पुरस्कार दिया ।
६७. फूलों के दृष्टांत की तुलना नहीं हो सकती स्वामीजी के पास देहरावासी लोग आकर बोले-'तुम्हें नदी पार करने में यदि धर्म है तो मूर्ति के सामने हम फूल चढ़ाते हैं, उसमें भी धर्म होगा।'
तब स्वामीजी बोले-एक मोर नदी का जल कटि तक है, दूसरी ओर उसका जल घुटनों तक है और तीसरी ओर वह सूखी है तो हम उस सूखी नदी से जाने को प्राथमिकता देंगे। अधिक जल वाली नदी को दो-चार कोस का चक्कर लेकर भी टालने का प्रयत्न करते हैं । और तुम जो फूल चढ़ाते हो, वहां एक ओर सूखे फूल पड़े हैं, दूसरी ओर दो-तीन दिन के कुम्हलाए फूल पड़े हैं और तीसरी ओर कच्ची कलियां हैं। तुम कौन से चढ़ाओगे ?
तब वे बोले-'हम तो कच्ची कलियों को नखों से तोड़-तोड़ कर चढ़ायेंगे।'
तब स्वामीजी बोले-तुम्हारा परिणाम (भाव) तो जीव-हिंसा के अभिमुख है और हमारा परिणाम दया की ओर अभिमुख है । इस न्याय से साधु द्वारा नदी पार करने के साथ फूलों के दृष्टांत की तुलना नहीं हो सकती।
६८. साधु ही कहलाता है किसी ने पूछा-भीखणजी ! तुम अन्य संप्रदायों के साधुओं को साधु नहीं मानते तो उन्हें ये अमुक संप्रदाय के साधु, ये अमुक संप्रदाय के साधु-ऐसा क्यों कहते हो ? ___ तब स्वामीजी बोले-किसी के घर मृत्युभोज होने पर गांव में निमंत्रण दिया जाता है-अमुक को निमंत्रण है खेमाशाह के घर का, अमुक को निमंत्रण है पेमाशाह के घर का, और यदि उन्होंने दिवाला निकाल दिया हो तो भी वे 'शाह' ही कहलाते
___इसी प्रकार कोई साधुपन नहीं पालता और साधु का नाम धराता है तो वह द्रव्य-निक्षेप की दृष्टि से साधु ही कहलाता है ।