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दृष्टांत : ७५ नीति यह थी कि इस प्रकार हम भीखणजी के श्रावकों को अपने पक्ष में कर सकते हैं। बड़ी कठोर प्ररूपणा करने लगे-“साधु तीसरे प्रहर में ही गोचरी करे। गांव में न रहे।"
कुछ दिनों बाद स्वामीजी मिले । आपने देखा कि वे पहले प्रहर में गौचरी कर रहे थे। तब स्वामीजी ने पूछा- "तुम तीसरे प्रहर में गोचरी करना बतलाते हो फिर पहले प्रहर में गोचरी कैसे कर रहे हो? ।
तब वे तड़क कर बोले- "हम तो धोवन पानी लाने के लिए घूम रहे हैं।'
स्वामीजी बोले-"धोवन पानी लाने में दोष नहीं है, तो रोटी लाने में क्या दोष होगा?"
वे फिर बोले-“साधु को लड्डू नहीं खाना चाहिए, उसे घी नहीं खाना चाहिए। उन्हें कौन-से बच्चों और बच्चियों को पैदा करना है ?"
___ स्वामीजी बोले-“तुम कहते हो, 'साधु को लड्डू नही खाना चाहिए,' तो 'देवकी के पुत्रों ने लड्डू का दान लिया'-यह सूत्रों में बतलाया गया है, वह कैसे ?"
तब वे बोले---- "वे तो महान् पुरुष थे।" तब स्वामीजी बोले-"महान् पुरुष होते हैं, वे ही खाते हैं।"
तब वे क्रोध कर बोले - "तुम तेरापंथियों ने दान-दया का लोप कर दिया, इसलिए हम तुम्हें लोगों की दृष्टि में गिरा देंगे।"
स्वामीजी बोले--"दो हजार वेषधारी साधु पहले से ही यह बात कह रहे हैं, उनमें यदि दो कम हैं, तो तुम उस संख्या को पूरा कर दो और यदि दो हजार पूरे हैं तो तुम दो अधिक हो जामोगे ?"
वहां से वे नेणवे गांव में गए। स्वामीजी के श्रावकों को शंकित बनाने का प्रयत्न करने लगे । तब श्रावक भी उनकी ठगाई को प्रकट करने लगे।
उन दोनों में एक बेले-बेले पारणा (प्रति दो दिवसीय उपवास के बाद भोजन) करता था । श्रावकों ने उसे कहा--- "तुम तो तपस्या ठीक करते हो। तुम्हारा दूसरा साथी तपस्या नहीं कर रहा है।"
तब वह बोला -"तपस्या लोलुपता छूटने पर होती है मेरा साथी खाने का लोलुप है।"
तब श्रावकों ने उसके साथी से कहा-"तपस्या करने वाला तुम्हें लोलुप बतलाता है।"
तब वह बोला -- "वह तपस्या करता है, पर क्रोधी है।"
तब उन्होंने तपस्या करने वाले से कहा-"तुम्हारा साथी तुम्हें क्रोधी बतलाता है। तब वे दोनों इकट्ठे हो परस्पर झगड़ने लगे । यह देख लोग बोले
"जोडी तो जुगती मिली, कुशलो ने तिलोक ।
ऊ थाप ऊ ऊथप, किण विध जासी मोख ॥ "इन दोनों की कैसी जोड़ी मिली है । परस्पर एक दूसरे को हीन बतला रहे हैं। इनका मोक्ष कैसे होगा?
फिर तिरस्कृत हो वहां से चले गए।