________________
१४८
भिक्खु दृष्टांत तब वह बोला-“छलांग लगाने से मेरी तो हड्डियों का कचूमर निकल जाएगा। तुम्हीं छलांग लगाओ।"
___तब वह बोला-"तुम्हारी हड्डियों का कचूमर निकल जाएगा, तो मेरा वायु का रोग कैसे मिटेगा ? ___ वैसे ही वेषधारी साधु कहते हैं, "असंयती को देने से हमारा साधुपन भग्न हो जाता है । तुम दो, तुम्हें पुण्य होगा।"
तब समझदार आदमी ने कहा-"जिस दान से तुम्हारा जिस साधुपन भग्न होता है, उस दान से हमें पुण्य कैसे होगा ?"
७३. यह बात तो मूर्ख मान सकता है (इसी विषय में दूसरा दृष्टांत) दो मनुष्यों के परस्पर लंबे समय से वैर-विरोध चल रहा था। बाद में उन्होंने परस्पर मेल-मिलाप कर लिया । एक व्यक्ति दूसरे को निमंत्रण देकर भोजन कराने अपने घर ले गया। भोजन परोस कर बोला-"भाई साहब ! भोजन करें।"
तब वह बोला-"तुम भी मेरे साथ भोजन करने बैठो।" वह उसके साथ भोजन नहीं करता।
तब वह बोला-"यदि तुम साथ में भोजन नहीं करोगे, तो मुझे भी भोजन करने का त्याग है।"
उसका निष्कर्ष था कि यदि भोजन में विषेले द्रव्य मिलाए हुए हैं, तब तो यह भोजन नहीं करेगा और यदि वह शुद्ध है तो साथ में भोजन कर लेगा।
ऐसे ही असंयती को दान देने में पूण्य बतलाते हैं तब समझदार आदमी जान लेता है कि ये स्वयं तो देते नहीं और दूसरों को देने में पुण्य बतलाते हैं। किन्तु यह बात तो जो मूर्ख होगा, वही मानेगा । यदि उसमें पुण्य हो, तो पहले स्वयं वैसा करेंगे, दूसरा व्यक्ति तभी उसे मानेगा।
७४. बुद्धि को पकड़ एक वेषधारी साधु बोला-“यदि भीखणजी को कटारे से मार डालूं तो हमारा झगड़ा ही समाप्त हो जाए।" कुछ समय बाद उसका शील भंग हो गया । तब उसे नई दीक्षा दी गई। लोगों में यह बात फैलाई गई कि इसने भीखणजी को कटार से मारने की बात कही, इसलिए इसे नई दीक्षा दी गई।
यह बात स्वामीजी ने भी सुनी। आपने अपनी बुद्धि से विचार किया-"लगता है, इसका शील भंग हुआ है।"
एक दिन वह मिला तब स्वामीजी ने पूछा- "तुम्हारा शील तुम्हारी संसारपक्षीया पत्नी से भंग हुआ अथवा अन्य स्त्री से भंग हुआ?" . तब वह बोला-"पर स्त्री से भंग नहीं हुआ और अपनी संसारपक्षीया स्त्री से भी स्पर्श रूप भंग हुमा, पूर्ण भंग नहीं हुआ। फिर भी नई दीक्षा दी गई।"
७५. कथनी-करणी का अन्तर वेषधारी साधु कुसलोजी और तिलोकजी कठोर चर्या में चलने लगे। उनकी