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दुष्टांत : ६४-६६
"वह लड़का ही करेगा ।"
"वह वधू किसकी कहलाएगी ?"
"लड़के की ।"
"घर किसका बसेगा ।"
" लड़के का ही बसेगा ।"
इस प्रकार स्थानक किनका कहलाएगा ?
उन्हीं साधुओं का । वे ही उस स्थानक में रहते हैं । वे ही प्रसन्न होते हैं । ६४. हमने कब कहा ?
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दामाद कब कहता है कि मेरे लिए हलुआ बनाओ। पर बनने पर वह खा लेता है । वह उसे खा लेता है, इसलिए दूसरी बार भी उसके लिए हलुआ बना दिया जाता है । यदि वह हलुआ खाने का त्याग कर लेता है तो फिर वह किसलिए बनाया जाएगा ?
इस प्रकार ये साधु कहते हैं, 'हमने कब कहा हमारे लिए स्थानक बनाओ,' उनके लिए बनाए गए स्थानक में वे रह जाते हैं । तब उनके लिए वे बनाये जाते हैं । यदि ने स्थान में रहने के त्याग करें, तो फिर गृहस्थ किसलिए बनाए !
६५. मारना तो छोड़ो
वेषधारी साधु कहते हैं- "हम मरते जीवों की रक्षा करते हैं, भीखणजी नहीं करते ।"
तब स्वामीजी बोले - "तुम्हारी रक्षा की बात दूर रही, मारना तो छोड़ो । अंधेरी रात्री में दरवाजे बन्द करते हो अनेक जीव मर जाते हैं। यदि दरवाजे को बन्द करने का त्याग करो, तो अनेक जीवों की रक्षा हो जाएगी। जैसे कोई चौकीदार था, उसने चौकीदारी तो छोड़ दी और चोरी करने लग गया। लोगों को कहता है 'मैं चौकीदारी करता हूं, इसलिए मुझे सुरक्षा करने के लिए पैसे दो ।'
तब लोग बोले- 'तुम्हारी चौकीदारी दूर रही, तुम चोरी करना तो छोड़ो। तुम दिन में दुकान और घर देख जाते हो और रात को सैंध मारते हो, चोरी करते हो । पैसे तुम्हें घर बैठे ही दे देंगे, तुम चोरी करना छोड़ दो ।'
वैसे ही वेषधारी साधु कहते हैं- 'हम जीवों की रक्षा करते हैं ।'
स्वामीजी बोले – 'तुम्हारी रक्षा की बात दूर रही तुम उन्हें मारना छोड़ो ।'
६६. दोष की स्थापना करने पर साधुपन कैसे रहेगा ?
कुछ लोग ऐसा कहते हैं - "अभी पांचवां अर है। इसलिए पूरा साघुपन पाला नहीं जा सकता ।" तब उनको स्वामीजी ने कहा--"चौथे अर में 'तेला' (तीन दिनों का उपवास) कितने दिनों का होता है ?"
तब उन्होंने कहा - "तीन दिन का होता है।"
स्वामीजी ने कहा – “एक मूंगड़ा (भूना हुआ चना) खा ले, तो तेला रहता है, या टूट जाता है ?