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दृष्टांत : ४७-४८
तब स्वामीजी बोले -"तुम्हारे तीसरे महाव्रत के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव जोर गुण क्या है ?" ___ तब कचरोजी बोला--"यह तो मैं नहीं जानता। यह पन्ने में लिखा हुआ है।"
तब स्वामीजी ने कहा---"यदि पन्ना फट गया या गुम हो गया, तो क्या करोगे ?"
तब वह बोला-'मेरे गुरु ने तुम्हें प्रश्न पूछा, उसका तुम्हें उत्तर नहीं आया।"
तब स्वामीजी बोले--"तुम्हारे गुरु ने मुझे जो प्रश्न पूछा, वही प्रश्न तुम मुझे पूछ लो । उनको उत्तर दिया है, तो तुम्हें भी देगे।"
तब कचरोजी बोला-"मेरे हिसाब से तुम तो मेरे दादा-गुरु हो। अतः तुम्हें मैं कैसे जीत पाऊंगा ?" तब स्वामीजी बोले- "मुझे ऐसे पौत्र-शिष्य नहीं चाहिए।"
४७. इसका हेतु क्या है ? उदयपुर में स्वामीजी के पास एक वेषधारी साधु आया और बोला- "मुझे माप प्रश्न पूछे।"
तब स्वामीजी बोले-"तुम हमारे स्थान पर आए हो, फिर क्या प्रश्न पूछे ? तब वह बोला- "कुछ तो पूछे ? तब स्वामीजी ने कहा --- "तुम संज्ञी (समनस्क) हो या असंज्ञी (अमनस्क)?" तब वह बोला-"मैं संज्ञी हूं।" स्वामीजी ने पूछा-"तुम संज्ञी हो, इसका न्याय बताओ।
तब वह बोला- “नहीं, नहीं, मैंने गलत कह दिया, उसके लिए “मिच्छामि दुक्कड़", मैं असंज्ञी हूं।"
स्वामीजी ने पूछा--- "तुम असंज्ञी हो उसका न्याय बताओ।' तब वह बोला-"मिच्छामि दुक्कडं ।" मैं न संज्ञी हूं, न असंज्ञी हूं। तब स्वामीजी बोले--"संज्ञी-असंज्ञी दोनों नहीं हो, यह किस न्याय से ?"
तब वह रोष में आकर बोला-"तुमने 'न्याय, न्याय' कर हमारा संप्रदाय विखेर दिया।' वह जाते-जाते छाती में मुक्के का प्रहार कर गया।
४८. आसोजी ! जी रहे हो? मांढा में स्वामीजी रात को व्याख्यान दे रहे थे। मासोजी नींद बहुत ले रहे थे। तब स्वामीजी ने कहा-"आसोजी ! नींद आ रही है ?"
आसोजी बोला-नहीं महाराज।" बार-बार पूछा- "नींद आ रही है ?" उसने बार-बार कहा-"नहीं, महाराज !"
तब स्वामीजी ने उसके असत्य को प्रगट करने के लिए अपनी प्रत्युत्पन्नमति के प्रयोग करते हुए पूछा-"आसोजी ! जी रहे हो?"
"नहीं, महाराज !" १. "मिथ्या दुष्कृत'–प्रायश्चित्त ।