Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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[संस्कृत टीका]-निजितमदनाटोपः' निःशेषेण जितो मदनस्य पाटोपोविज़म्भणं येन प्रसौ लिजितमदनाटोपः । 'प्रशमित कोपः' प्रकर्षण शमितः कोप येनासो प्रशमितकोपः । "विमुक्तविकथालापः' विशेषेण मुक्तः त्यक्तः विकथाया पालापो विकथासायः मिथ्यालापो येनासौ विमुक्त विकथालापः । 'देव्यर्चनानुरक्तः देवी-पद्मावती तस्या अर्धने-पूजने अनुरक्तः । 'जिनपदभक्तः' श्री जिनेश्वरपदकमलभक्तः प्रसौ 'मन्त्री मन्त्रवादी एवं गुणयुक्तो 'भवेत्' स्यात् ॥६॥
हिन्दी टीका--जिन्होंने कामदेव के उपद्रव को नष्ट कर दिया है और क्रोधादिक को जीत लिया हैं, कितना भी कारण मिलने पर, स्त्री आदिक का उपद्रव होने पर भी, विचलित नहीं होते और क्रोधाविष्ट नहीं होते हैं, संपूर्ण विकथाओं का त्याग कर दिया है और महादेवी के पूजन में अट्ट श्रद्धा रखनेवालों, भगवान श्री जिनेन्द्र देव के चरणों के परम भक्त, इतने लक्षणों से जो सहित होते हैं उन्हिको मंत्रसाधन करने का अधिकार है अर्थात् वे ही मंत्री हो सकते हैं ।
मन्त्राराधनशूरः पापचिदूरो गुणेन गम्भीरः ।
मौनी महाभिमानी मन्जी स्यादीहशः पुरुषः ॥७॥
[संस्कृत टीका]--मन्त्रस्याराधनं मन्त्राराधनं तस्मिन् शूरः-निर्भयः असौ मन्त्राराधनशूरः । पुनः कथम्भूतः ? 'पाप विदूरः' दुष्कर्मकरणविदूरः। 'गुणेन गम्भीरः सकलगुरगः कृत्वा गम्भीरः । मौनं विद्यते यस्यासो मौनी। 'महाभिमानी' महांश्चासो अभिमानश्च महाभिमानः स विद्यते यस्यासो महाभिमानी । ईशः पुरुषः' एवं गुण विशिष्टः पुमान् । 'मन्त्री मन्त्रवादी स्यात् ॥७॥
हिन्दी टीका-जो शुर वीरता के साथ मंत्रों को सिद्ध करनेवाला हो अर्थात् मंत्र सिद्ध करते समय पानेवाले उपसर्गादिक को वीरता के साथ जीतनेवाला हो और सम्पूर्ण पापों को करने से भयभीत हो, गुगों से गम्भीर हो, मौनी हो, शुद्ध मौन को धारण करनेवाला हो. अभिमानी हो, किसी भी हालत में अपने स्वाभिमान का रक्षा करनेवाला हो, स्वाभिमानी व्यक्ति किसी के सामने नहीं झुकता, ऐसा व्यक्ति ही मंत्राराधक होता है ।।७।।
गुरुजन हितोपदेशो गततन्द्रो निद्रया परित्यक्तः । परिमित भोजन शीलः स स्यादाराधको देध्याः ।।८।।