Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 551
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४३. १ सू०८ श० पष्ठपृथ्वीगतजीवानामु० दिवम् ५६५ उत्वयते इति प्रश्नस्य जघन्यत एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टतः संख्याता मनुष्या एकसमये तत्र शर्करामभानर के समुत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् तथा शर्कराप्रमायां समुत्पत्स्यमानानां संहननानि षट् भवन्ति । रत्नप्रभा पेक्षा यद्वैलक्षण्यं तद्दर्शयति- 'नवरं' इत्यादि, 'नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं स्यणिपुहुत्तं ' नवरम् - केवलं रत्न भागमापेक्षया इदं वैलक्षण्यं यत् तंत्र शरीरावगाहना जनन्येन अंगुल पृथक्त्वम् उत्कृष्टतः पञ्चरतुःशतानि कथितानि इह तु शरीरावगाहना जघन्येन रनिपृथं - क्त्वम्, रनिर्नामुष्टिस्तः तथा च बद्धमुष्टि द्विहस्तादारभ्य नवहस्तपर्यन्ता जघन्या शरीरावगाहना 'उक्को सेणं पंन धणुमयाई' उत्कर्षेण पञ्चधनुःशतानि जघन्येन हर पृथक्त्वमुत्कृष्टतः पञ्चधनुःशतानि शरीरावगाहनेति भवत्येव रत्नप्रभायि " : में कितने जीव एक समय में उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर यहीं है कि वहां एक समय में जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात मनुष्य शर्करा प्रभा में उत्पन्न होते हैं । तथा इस शर्कग प्रभा में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों को ६ संहनन होते हैं । रत्नप्रभा पृथिवी के कथन की अपेक्षा यहां जो भिन्नता है उसे अब सूत्रकार 'नवर'०' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रकट करते हैं- इसमें यह कहा गया है कि यहां उत्पन्न होनेवालों के शरीर की अवगाहना जघन्य से रहिन पृथक्त्व की है, और उत्कृष्ट से पांचसौ धनुष तक की है, बंधी हुई मुट्ठी वाले हाथ को नाम रत्नि है, दो रत्नि से लेकर ९ रत्नि का नाम रत्नि पृथक्त्व है, रत्नप्रभा में जाने वाले मनुष्यों की शरीरावगाहना जघन्य से अङ्गुल पृथक्त्व की है और उत्कृष्ट से पांचसौ धनुष કહી લેવી જોઇએ જેમકે-હિ મજા નરકમાં એક સમયમાં કેટલા જીવા ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તર એજ છે કે-ત્યાં એક સમયમાં જઇ ન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટથી સખ્યાત મનુષ્ય શર્કરાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. તથા આ શકરાપ્રભા પૃથ્વીમાં ઉત્પન્ન થવાવાળા મનુષ્યેાને ૬ ૭ સહનન હૈાય છે. રત્નપ્રભા પૃથ્વીના કથનની અપેક્ષાથી અહિયાં આ કથનમાં જે જુદાપણું છે, તે સૂત્રકાર ‘નવä' ઇત્યાદિ સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રગટ કરે છે તેમાં એ કહેવામાં આવ્યુ છે કે—અહિયાં શરીરની અવ ગાઢુના જઘન્યથી પત્નિ પૃથડ્વની કહી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી. પાંચસે ધનુષ સુધીની છે. મધ કરેલ મુઠ્ઠીવાળા હથનુ નામ નિ એ રનિથી લર્નને ૯ રતિનું નામ રત્ન પૃથ છે. રત્નપ્રભામાં જવાવાળા મનુષ્ચાના શરીરની અવગાહના જઘન્યથી આંગળ પૃથ્ર્યની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી, પાંચસેા ધનુષની

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