Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 625
________________ प्रमेयंचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०३ मनुष्येभ्यो असुरोत्पादादिकम् ५९९ भदन्त ! 'केवइयकालटिइएमु उवाज्जेज्जा' 'कियत्कालस्थितिकेषु असुरकुमारेषु उत्पद्यते इति प्रश्नः। भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्साठिइएमु जघन्येन दशवर्ष सहस्रस्थितिकेषु असुरकुमारेषु उत्पद्यते, 'उकोसेणं तिलिभोवमट्टिएसु उववज्जेज्जा' उत्कर्षेण निपल्योपमस्थिति के पूत्पद्यत दे कुगदिनरा उत्कर्षतः स्वायुषः समानमेव देवायुपो चन्धका भवन्तीत्यत उक्तम् 'तिपलिभोवमट्टिइएसु' इति । 'एवं संखेज्जवासाउयतिरिक्खनोणियसरिसा आदिल्ला तिन्नि गमगा नेयन्या' एवं संख्येयवर्षायुष्क तिर्यग्योनिकसदृशा औधास्त्रयो गमका नेतव्याः, असंख्येयवर्वायुष्कसंक्षिपञ्चेन्द्रियनियर गोनिकप्रकरणं सर्वमत्र नेतन्यम् । तिर्यग्गमापेक्षया रद्वैलक्षण्यं तदिह स्वय. मेव दर्शयति 'नवर' इत्यादि, 'नवरं सरीरोगाहणा पढमविइएसु गमपम नवरम्कुमारों में उत्पत्ति के योग्य है वह मनुष्य कितने काल की स्थितिवाले असुर कुशरों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में गौतम से प्रभु कहते हैं-गौतम! जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थितिवाले असुरकुमारों में और उत्कृष्ट से तीन पल्पोपम की स्थितिवाले असरकुमारों में वह उत्पन्न होता है, क्योंकि देवकुरु आदि के मनुष्य अपनी आयु के बन्धक होते हैं, किन्तु अपनी आयुसे अधिक आयुके बन्धक नहीं होते हैं। इस प्रकार से यहां असंख्यात वर्षायुष्क तिर्यग्योनिक जीव के प्रकरण गत आदि के ३ गम यहां कह लेना चाहिये, अर्थात् असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंग्योनिक का प्रकरण सघ यहां पर कहना चाहिये, परन्तु तिर्यग्गमकी अपेक्षा जो भिन्नता है उसे सूत्रकारने स्वयं ही यहां 'नवर सरीरोगाहणा पढमबिइएस्सु गमएसु०, इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया મનુષ્ય :કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે-હે ગૌતમ! જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારામાં અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારેમાં તે ઉત્પન્ન થાય છે. કેમકે દેવકુરૂ આદિના મનુષ્ય પિતાની આયુષ્ય સરખી જ દેવઆયુને બંધક હોય છે. આ રીતે અહિં અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા તિર્યંચ નિવાળા જીવના પ્રકરણમાં કહેલા પહેલાના ત્રણ ગમે અહિયાં કહી લેવા જોઈએ અથાત્ અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંસી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળાનું તમામ પ્રકરણ અહિયાં સમજી લેવું જોઈએ. પરંતુ તિર્યંચ ગમ કરતાં અહિયાં જે જુદાપણું છે. તે સૂત્રકાર પોતે જ माहियां 'नवर सरीरोगाहणा पढ़मबिइएसु गमएसु' मा सूत्रपा द्वारा मताव

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