Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 626
________________ ६०० भगवतीसूत्र केवलम् शरीरावगाहना प्रथमद्वितीययोर्गमयोः, 'जहन्नेणं सारेगाई पंचधणु. सयाई जघन्येन सातिरेकाणि पश्च धनुःशतानि, 'उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई उत्कर्षेण त्रीणि गव्युतानि, तत्र प्रथम औघिर औषिकेपु द्वितीय ऑधिको जघन्यस्थितिके पु तत्रौधिकोऽसंख्यातायुमनुष्यो जघन्येन सातिरेकपञ्चधनु:शतप्रमाणकशरीरो भवति यथा सप्तमकुलकरमापकालमावी मिथुनकमनुष्यः, उत्कृष्टतस्तु निगव्यूतमानो यथा देवकु दिमिथुनकनरः, स च प्रथमगमे द्वितीयगमे च द्विपकारकोऽपि संमनि-तृतीयगमे तु जघन्योत्कृष्टा गतिशरीरावगाहणनावानेत्र संभवति यस्मादयमेव उत्कृष्ठस्थितिषु पल्योपमत्रयायुकेषु समुत्पद्यते उत्कृष्टतः स्वायुषः समानस्यैवायुपो बन्धकत्वात्तस्येति । 'सेसं तं चेत्र' है-इसमें यह समझाया गया है कि-प्रथम द्वितीय गम में शरीरावगा. हना जघन्य से सातिरेक पांचली धनुष और उत्कृष्ट से तीन गव्यत प्रमाण होती है, इनमें प्रथम औधिक औधिकों में एवं द्वितीय औधिक जघन्य स्थिति वालों में है, जैसे-असंख्यात वर्ष की आयुवाला मनुष्य जघन्य से सातिरेक पांचसौ धनुषामाण शरीर वाला होता है, जैसा कि वह सप्तम कुलकरके पहिले का मिथुनक मनुष्य होता है और उत्कृष्ट से वह तीन गव्यूत प्रमाण शरीरवाला होता है, जैसा कि देवकुरु आदि का मिथुनक मनुष्य होता है, इस प्रकार वह प्रथम गम में और द्वितीय गम में दोनों प्रकार वाला भी संभवित होता है। परन्तु ततीय गम में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण शरीरावगाहना घाला ही संभवित होता है क्योंकि यही उत्कृष्ट स्थितिवाले पल्योपम नय आयुष्क बालों में उत्पन्न होता है, और यही उत्कृष्ट से अपनी છે. આ સૂત્ર પાઠથી એ સમજાવ્યું છે. કે-પહેલા અને બીજા ગમમાં શરીરની અવગાહના જઘન્યથી સાતિરેક પાંચસે ધનુષ અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ ૩ ગભૂતિ ( છ ગાઉ) પ્રમાણ હેય છે. આમાં પહેલે ગમ ઔધિક ઔવિકમાં અને બીજે ગમ ઓઘિક જઘન્ય સ્થિતિ વાળાઓમાં છે, જેમ કે-અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો મનુષ્ય જઘન્યથી સાતિરેક ૧૦૦ ધનુષ પ્રમાણ શરીરવાળ હોય છે. જેમકે તે સાતમાં કુલકર પહેલાના કાળમાં મથુનિક મનુષ્ય હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે ત્રણ ૩ ગભૂતિ ( છ ગાઉ) પ્રમાણુના શરીરવ ળ હોય છે. જેમકે દેવકર વિગેરેના મિથુનિક મનુષ્ય હોય છે. આ રીતે તે પહેલા ગામમાં અને બીજા ગામમાં અને પ્રકારવાળો પણ સંભવિ શકે છે, કેમકે-એજ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા ત્રણ પાપમની આયુષ્યવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અને એજ इष्टथा पातानी मायुनी परेरनी मायुष्यन। म ४२नार डाय छे. 'सेसं

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