Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 656
________________ ६३० ___ भगवतीले जघन्यकालस्थितिको जातः, स एवासंख्यातवर्षायुष्क संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका स्वयं जघन्य कालस्थितिकोऽथ च नागकुमारावासे उत्पधन्ते 'तस्सवि तिमु वि गमएसु' तस्यापि विष्वपि गमकेषु 'जहेव असुरकुमारेसु उपवज्जमाणस्स जहन्ना कालहित्यस्स तहेब निरवसेसं' यथैव असुरकुमारेपृत्पद्यमानस्य जघन्यकालस्थिति. कस्य तथैव निरवशेषम् स्वयं जघन्यकालस्थितिकरय असंख्यातवर्षायुष्क संक्षिपञ्चेन्द्रियतिरश्वोऽमुरकुमारेषुत्पित्सोर्यथैव वक्तव्यता असुरकुमारप्रकरणे कथिता निरव शेषा सा सर्वाऽपि वक्तव्यता स्वयं जघन्यकालस्थितिका संख्यातवर्षायुष्कसंहिपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकस्य नागकुमारावासे जिगमिषोक्तव्येति । असुरकुमारमकरण वेत्थर-स एवासंख्यात वर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका आत्मना जघन्यकालस्थितिको जातः स जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थितिके उत्कर्पण सातिरेकपूर्वकोटयाहैं-'सो चेव अप्पणा जहनकालहिइओ' हे भदन्त ! यदि वह असं. ख्यात काल की स्थितिवाला संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जो कि जघन्य कालकी स्थिति को लेकर के उत्पन्न हुआ है और वह नागकु. भार के आवास में उत्पन्न होने के योग्य है, तो यहां पर भी 'तिसुवि गमएलु' उसके तीनों गमको में जहेव असुरकुमारेलु उववज्जमाणस्स जहन्नकालद्वियल्स तहेव निरवसेस' असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले जघन्य काल की स्थिति संपन्न असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रियतियंग्योनिक जीव की वक्तव्यता जैसी वक्तव्यता पूरी की पूरी जाननी चाहिये, यह वक्तव्यता असुरकुमार के प्रकरण में कही गई है, वह असुरकुमार प्रकरण इस प्रकार से है-जैसे वह असंख्यात वर्षायुक संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जो कि जघन्य काल की स्थिति में બીજા ત્રણ ગમેનું નિરૂપણ કરતાં બીજા ત્રણ ગમ પૈકી તેને पाडो मम प्रगट रे छ. 'सो चेव अप्पणा जहन्नकालदिइओ०' 3 ભગવન અસંખ્યાત કાળની સ્થિતિ વાળો સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ ચેનિવાળ જીવ કે જે જઘન્ય વર્ષની સ્થિતિથી ઉત્પન્ન થયે છે, અને તે નાગકુમારના આવાસમાં નિવાસમાં ઉત્પન થવાને ગ્ય છે. તે તે સંબધમાં ५ 'तिसु वि. गमएसु' तनाये गमामा 'जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जहन्न कालढिइयस्स तहेव निरवसेस' मसुमारेरामा Brपन्न थवा धन्यકાળની સ્થિતિવાળા અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળા જીવના કથન પ્રમાણેનું તમામ કથન પુરેપુરૂં સમજવું. આ કથન અસુરકુમ ના પ્રકરણમાં કહેલ છે તે અસુકુમારનું પ્રકરણ આ પ્રમાણે છેતે અસંખ્યાત વર્ષની આ યુષ્યવાળે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિથી નિવાળો જીવ

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