Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 666
________________ ६४० अगवतीसूत्र इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्स.' जघन्येन दशवर्षसहत्रस्थितिकेषु 'उको सेणं देसूण दो पलिगोवा' उत्कर्षेण देशोन हिपल्योपमस्थितिकेषु, जघ यतो दशवर्षसहस्रस्थिविकनागकुमारेषु ते जीवा उत्पद्यन्ते तथोत्कृष्टतो देशोनद्विपल्योपमस्थितिकनागकुमारेपूत्पद्यते इति भावः। एवं जहेत्र असंखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं नागकुमारेसु आदिल्ला तिन्नि गमगा तहे। इमस्स वि' एवं यथैवासंख्यातीयुष्कानां तिर्यग्योनिकानां नागकुमारेषु आद्यास्त्रयो गमका स्तथा एतस्यापि असंख्येयवायुष्कतिर्यग्योनिकानां नागकुमारागसे उत्पत्ती आधास्त्रयः औधिका गमकाः प्रदर्शिता स्तथाऽस्यापीति भावः, तिर्यग्योनिका नागकुमारे पूत्पधन्ते १, तिर्ययोनिकाः जघन्यकालस्थितिक नागकुमारेस्पधन्ते२, तिर्यग्योनिकाः उत्कर्षकालस्थितिकनागकुमारेपूत्पद्यन्ते३, नागकुनारों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जहन्नेणं दसवाससहस्सः' हे गौतम ! ऐसे ये जीव जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले नागकुमारों में और 'क्कोसेणं देसूण दो पलि मोवम' उत्कृष्ट से कुछ कम दो पल्योपम की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होते है । 'एवं जहेष असंखेज्जवासाउयाणं तिरिवखजोणियाणं नागकुमारेलु आदिल्ला तिन्नि गमगा तहेव इमस्स वि' इस प्रकार जैसे असंख्यातवर्षायुष्क तिर्यग्योनिक जीवों के नागकुमारों में उत्पन्न होने के सम्बन्ध में आदि के तीन औधिक गमक कहे गये हैं उसी प्रकार से वे गमक यहां पर भी कहना चाहिये, अर्थात् तिर्यग्योनिक जीव जैसे नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं, तथा जैसे वे जघन्यकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं और जैसे वे उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले नागकुमारों उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार से असंख्येय वर्षा सेणं देसूण दो पलिओवमढिइएसु' कृष्टया ४७४ माछा में पक्ष्या५मना स्थितिमा नागभामा उत्पन्न थाय छे. 'एवं जहेव असंखेन्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणिणियाणं नागकुमारेसु आदिल्ला तिन्नि गमगा तहेव इमस्स वि' मा शत भ અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા તિર્યંચ નિવાળા જીવોના નાગકુમારેમાં ઉત્પન્ન થવાના સંબંધમાં પહેલાના ત્રણ ઔધિક ગમો કહ્યા છે. એ જ રીતે તે ગમે અહિં પણ કહેવા જોઈએ. અર્થાત તિય"ચ નિવાળા છે જે પ્રમાણે નાગકુમારેમાં ઉત્પન્ન થાય છે ૧ તથા જેવી રીતે તેઓ જઘન્ય કાળની રિથતિવાળા નાગકુમારોમાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને જેવી રીતે તેઓ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા નાગકુમારોમાં ઉત્પન્ન થાય છે, એ જ રીતે અસંખ્યાત વર્ષની

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