Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 654
________________ " - 2 भगवती सूत्रे पामेव तादशपमाणायुष्कत्वात् एतेषामेव च स्वायुः समानदेवायुर्वन्वेन उत्कृष्टस्थितिकेषु नागकुमारेपृत्पादादिति । 'उपोसेणं तिथि पछिभोनमाई' स्त्रीणिपयोपमानि पत्योपमत्रयम् उत्कृष्टापुरेतेपामिति । अत्रोत्कृष्टायुद पल्योपमत्रयं कथितं तत् देवकुधि संख्यावायुरितरथ आश्रित्य मोक्तम् वे त्रिपल्योपमापोऽपि देशोन द्विपयोपमानमायुध्नन्ति यतस्ते स्वायुः समान हीनतरं वा आयुर्वध्नन्ति किन्तु महत्तरं न बध्नन्ति इति भावः 'सेसं नं 'वेव' शेषं तदेव 'जाव भवादेसोत्ति' यावदुद्भवादेश इवि, शेषम्-स्थिस्यतिरिक्त भवादेशपर्यन्तं सर्वं प्रथमगमवदेव पोद्धव्यम् । कायसंवेधे कालापेक्षया आयुवाले तिर्यक्षको लक्ष्य करके हुआ है, क्योंकि ऐसे निर्यत्र ही इस प्रकार की आयुष्क वाले होते हैं। और ये ही अपनी आयु से अधिक देवायु के पन्धक नहीं होते हैं इससे उनका उत्कृष्ट स्थिति वाले ऐसे ही नागकुमारों में उत्पाद होता है। तथा 'उफोमेणं तिथि पलिओवमाई' उत्कृष्ट से इनकी आयु तीन पत्मोपम की है । यहां उत्कृष्ट आयु जो तीन पल्योपम की कही गई है-वह देवकुरु आदि के असं. ख्यात वर्ष के आयुवाले तिर्यञ्चों को लेकर कही गई है। ये तीन पत्योपम की आयुवाले भी देशोन द्विवल्योपम को आयु का पन्न करते हैक्योंकि वे अपनी आयु के समान आयु का अथवा हीनतर आयु का बन्ध करते हैं- अधिक आयु का चन्ध नहीं करते हैं। 'सेनं तं चैव जान 'भवासोत्ति' बाकी का भवादेश तक ओर सब कथन इस स्थिति कथन के सिवाय प्रथम गम के जैसा ज्योंका त्यों है । 'कायसंवेधे' काय -ઉદ્દેશીને કહેલ છે. કેમકે એવા તિર્યંચાજ આ પ્રકારની આયુષ્યવાળા હોય છે. અને એજ પેાતાની આયુના સમાન દેવાયુના અધ કરનાર હાય છે. તેથી તેઓના ઉત્પાદ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા નારકામાં જ થાય છે. તથા પો. सेण तिनि पछिओवमाई' उत्सृष्टथी भालु पहयेोयभनी तेभनी गायु ही है. આહી જે આ ઉત્કૃષ્ટ આચુ ત્રણ પત્યેાપમની કહી છે, તે દેવકુરૂ વિગેરેના અસખ્યાત વષઁની આયુષ્યવાળા તિય અને ઉદ્દેશીને કહે છે. આ ત્રત્રુ પ૨ેશપમની આયુષ્યવાળા પણુ દેશેાન એ પચેપમની આયુષ્યના ખધ કરે છે.કેમકે તેઓ પેાતાની આયુષ્યની સરખી આયુષ્યના ખધ કરે છે. વધારે આયુया धरता नथी. 'सेस तं चैव जाव भवादेस्रोत्ति' माडीनु लवाहेश 'સુધીનું તમામ કથન આ સ્થિતિ કથનના વિષય શિવાયનુ' પહેલા ગમના કથન 'अभार्थे नेम॑नु॒ तेभ सभनवु' 'काय संवेध' अय सवेधभां अजनी अपेक्षाये

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