Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 615
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ ०२ सं. सं. पं. असुरकुमा रेषूत्पादः ५८९ उत्पद्यन्ते स्थलचरेभ्य उत्पद्यन्ते खेचरेभ्यो वा आगत्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः, हे गौतम | जलचरेभ्योऽपि आगत्य उत्पद्यन्ते स्थलचरेभ्वोऽपि आगस्योत्पद्यन्ते खेचरेभ्योऽपि आगत्योत्पद्यन्ते । हे भदन्त ! यदि जलचरादिभ्य आगत्योत्पद्यन्ते तदा किं पर्याप्तकेभ्य एम्य आगत्येस्पद्यन्ते अथवा अपर्याप्तकेभ्य एतेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते ? गौतम | पर्यातकेभ्य एतेभ्यो जलचरादिभ्य आगत्योत्पबन्ते । 'पज्जत्त संखेज्जवासाज्य सन्निषं चिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते' पर्याप्तसंख्ये यवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः खलु भदन्त । 'जे भविए असुरकुमारेसु उववत्तिए' यो भन्योऽमुरकुमारेपुत्पत्तम्, 'से णं भंते । स खलु भदन्त ! हैं तो क्या वे जलचरों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या स्थलचरों में से आकर के उत्पन्न होते है ? या खेचरों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौनम ! वे जलचरों से आकर भी उत्पन्न होते है, स्थलचरों से भी आकर के उत्पन्न होते हैं और खेचरों से भी आकर के उत्पन्न होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - हे भदन्त ! यदि जलचरादिकों में से आकर के जीव असुरकुमारों की पर्याय से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे पर्याप्त जलचरादिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या अपर्याप्त जलचरादिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम! पर्याप्त जलचरादिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं । 4 अब गौतम प्रभु से पुनः ऐसा प्रश्न करते हैं- 'पज्जन्त संखेज'वासाउयसन्निपंचिदिय०' हे भदन्त । जो पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે બેચરામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ ! તેએ જલચરામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે. સ્થલચરામાંથી પણ આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, અને ખેચરામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે. હવે ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એવુ' પૂછે છે કે—હે ભગવન્ જો જલચર વિગેરેમાંથી આવીને જીવ અસુર કુમારેાની પર્યાયથી ઉત્પન્ન થાય છે. તેા શુ... તે પર્યાપ્ત જલચરે વિગેરેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે કે અપર્યાપ્ત જલચરાદિકામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હૈ ગૌતમ ! પર્યાપ્ત જલચરાદિકમાંથી આવીને उत्यन्न थाय छे. इरी गौतमस्वाभी अलुने पूछे छे !-'पज्जत्तस खेज्जवासाय सन्नि प'चिदिय०' हे भगवन् पर्याप्त संख्यात वर्षांनी आयुष्यवाणो ज्ञी પચેન્દ્રિય તિયચ્ચેાનિવાળો જીવ જો અસુરકુમારેશમાં ઉત્પન્ન થવાને

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