Book Title: Bhagwati Sutra Part 14
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 613
________________ प्रमेयचन्द्रका टीका श०२४ उ. २ ०२ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम्... fasteमाई' नवरं कालादेशेन - काळापेक्षा जघन्येन पल्पोपमान्येव देव इयं जाव करेज्जा' एतावन्तं यावत्कुर्यात् एतावन्तमेव कालं तिर्यग्गतिमसुकुमारगर्ति च सेवेत तथा एतावन्तमेत्र कालं तिर्यग्गतौ असुरकुमारगतौ च गमनागमने कुर्यादिति नवमो गमः ॥ मु० १ ॥ 27-80 एवं क्रमेणा संख्यातवयुकसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिरश्चामसुंरकुमारेषु समुत्पादो'दर्शितः, तदनन्तरं संख्यातवर्षायुषां संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिरश्चाम सुरकुमारेषु उत्पादादिकं प्रदर्शयितुमाह- 'जइ संखेज्ज' इत्यादि । दु मूलम् - जइ संखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्र्ज्जति किं जलचरेहिंतो उचवज्जति, थलचरेहिंतो उववज्र्ज्जति खह बरेहिंतो उववज्र्ज्जति एवं जाव पज्जत संखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्ख जोणिए of भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयकालट्ठिएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहन्त्रेणं दसवास सहसइिएस उक्कोसेणं सातिरेग लाग रोवमहिइएसु उवयंज्जेज्जा ते णं भंते! जीवा एगसमएणं० एएसिं स्यणप्पभापुढवीगमसरिसा णव गमगा गेयव्वा । णवरं जाहे अप्पणा जहन्नकालाइिओ भवइ ताहे तिसु वि गमएस इमं णाणतं 3 इस प्रकार से है- 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेण उपलि ओमाई ०" यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट से वह जीव काल की अपेक्षा छपल्योपमतक उस तिर्यगगतिका और असुरकुर गनि का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें गमनागमन करता है । ऐसा यह नौवां गम है ॥ १ ॥ मा प्रभाये छे -'नवंर' कालादेसेणं जहन्नेणं छ पलिओ माईο' मडियां भ्ध ન્યથી તે છત્ર કાળની અપેક્ષાએ છ પત્યેામ સુધી એ તિર્યંચગતિનું અને સુરકુમાર ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલાજ કાળ સુધી તેમાં ગમના ગમન કરે છે. એ રીતે આ નવમા ગમ છે. પ્રસૂ॰ પા 12

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