Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 295
________________ गा.-९२ बन्धशतकप्रकरणम् ऽनिवृत्तिबादरान्तः सप्तविधबन्धकाले उत्कृष्टयोगे वर्तमानो मोहनीयस्योत्कृष्टप्रदेशबन्धं करोति, पुनरनुत्कृष्टयोगं प्राप्यानुत्कृष्टं प्रदेशबन्धं करोति, पुनरुत्कृष्टं पुनरप्यनुत्कृष्टमित्येवमुत्कृष्टानुत्कृष्टप्रदेशबन्धयोः संसरतां जन्तूनां मोहस्योत्कृष्टानुत्कृष्टप्रदेशबन्धौ द्वावपि साद्यध्रुवौ भवतः । जघन्याजघन्यौ प्रदेशबन्धौ यथा सूक्ष्मनिगोदादिषु संसरतां जन्तूनां कर्मषट्कस्यानन्तरमेव भावितो, तथात्रापि निर्विशेषं भावनीयौ । आयुष्कस्याध्रुवबन्धित्वादेव तत्प्रदेशबन्ध उत्कृष्टादिचतुर्विकल्पोऽपि साद्यध्रुव एव भवतीति गाथार्थः ॥१२॥ भा० छण्हं गाहाए छण्हं मोहाउयविरहियाण पयडीण । अणुक्कोसयीवे( पएस )बंधे सायाइचउव्विहो बंधो ॥७८२॥ होइ तत्थ य उवसामगस्स खवगस्स वा वि दसमगुणे । छक्कम्माई बंधंतयस्स मोहणियआऊणं ॥७८३॥ भागाण कम्मबंधम्मि संपवेसाउ एत्थ बहु दव्वं । लब्भइ तो दसमगुणो सव्वुक्कोसम्म जोगम्मि ॥७८४॥ वट्टमाणस्स एगं दुगं च समयाउ जाव उक्कोसो । होइ पएसबंधो पएसबंधं तमुक्कोसं ॥७८५॥ पकरित्ता उवसामगवत्थागयो चिय पुण वि परिवडिय । अहवा तत्थेव ठिओ उक्कोस जोगा उ परिवडिय ॥७८६॥ थोवं पएसबंधं तस्स करितस्स साइओ बंधो । तं ठाणमपत्तस्स उ अणाइबंधो मुणेयव्वो ॥७८७॥ सेसतिगे उक्कोसे जहन्नअजहन्नयम्मि बंधतिगे । दुविगप्पो साईअधुवलक्खणो होइ किर बंधो ॥७८८॥ तत्थ अणुकिट्ठभणणप्पसंगओ सुहुमसंपरायम्मि । भणिओ पएसबंधो उक्कोसो सो य किर पढमं ॥७८९॥ २७९

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